पत्र–लेखन in hindi grammar

Patra–lekhan in hindi grammar.

पत्र लेखन का अर्थ:– पत्र लेखन हिंदी साहित्य की एक महत्वपूर्ण विधा है। यह दूरस्थ व्यक्तियों को भावना के स्तर पर जोड़कर उनके बीच आत्मीय संबंध कायम करता है। इस संबंध में अंग्रेजों के प्रसिद्ध विद्वान जेम्स हॉवेल का यह कथन उल्लेखनीय है कि “जैसे कुंजी बंद बक्से को खोलती है, वैसे ही पत्र हृदय के कपाट खोल देता है।” पत्र मनुष्य की भावनाओं की स्वाभाविक अभिव्यक्ति है। दूरी अथवा संकोच के कारण जो बात हम किसी से कह नहीं पाते, उसे पत्र के द्वारा आसानी से व्यक्त कर सकते हैं। इस प्रकार पत्र द्वारा स्थापित संबंध निश्चल और बेबाक होता है। हमारे जीवन में पत्रों की बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका है।

पत्र लेखन एक ऐसी कला है, जिसमें प्रवीण व्यक्ति जीवन में बड़ी–बड़ी सफलताएं अर्जित कर सकता है। इसके विपरीत एक अकुशल पत्र–लेखक बने हुए संबंधों को भी बिगाड़ सकता है। कलात्मकता का समावेश हो जाने के कारण आजकल पत्र–लेखन को एक स्वतंत्र साहित्यक विधा के रूप में मान्यता मिलने लगी है। इसलिए इस कला में प्रवीणता प्राप्त करने हेतु अत्यधिक सावधानी और सतत अभ्यास की आवश्यकता होती है।

पत्र लेखन की उपयोगिता क्या होती है अथवा इसके महत:– 

१. आजकल दूर–दूर रहने वाले सगे–संबंधी एवं व्यापारियों को आपस में एक–दूसरे से मेल–जोल रखने एवं संबंध रखने की आवश्यकता होती है। इस कार्य को पूरा करने में पत्र लेखन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

२. व्यापारिक अथवा निजी सूचनाओं को प्राप्त करने के लिए तथा उसे भेजने के लिए पत्र लेखन की आवश्यकता होती है। जैसे:– प्रेम, क्रोध, जिज्ञासा, आदेश, प्रार्थना, निमंत्रण आदि भावों को प्रकट करने के लिए पत्र लेखन का ही सहारा लिया जाता है।

३. पत्रों के माध्यम से संदेश भेजने में,पत्र में जो लिखित सूचना होती है वह पूर्ण रूप से गोपनीय रखी जाती है। पत्र को भेजने वाला तथा इसे प्राप्त करने वाले के अलावा किसी भी अन्य व्यक्ति को इस लिखित पत्र को पढ़ने अधिकार नहीं होता है।

४. माता –पिता, शिक्षक, मित्र, छात्र, व्यापारी, प्रबंधक, ग्राहक एवं अन्य समस्त सामान्य व्यक्तियों व किसी भी विशेष व्यक्ति से सूचना लेने तथा सूचना देने के लिए पत्र लेखन का प्रयोग किया जाता है।

५. वर्तमान समय में व्यावसायिक क्षेत्रों में ग्राहकों को माल के प्रति संतुष्टि देने हेतु, व्यापार की ख्याति को बढ़ाने हेतु, व्यवसाय का विकास करने हेतु इत्यादि कार्यों के लिए पत्र व्यवहार का विशेष महत्व होता है।

पत्र लेखन के आवश्यक तत्व अथवा इसकी विशेषताएं:– 

पत्र लेखन से संबन्धित अनेक महत्त्वपूर्ण महत्व होते हैं परंतु इन महत्व का लाभ तभी उठाया जा सकता है जब पत्र को एक आदर्श पत्र के रूप में लिखा गया हो। पत्र में सम्मिलित निम्नलिखित तत्वों के कारण ही पत्र को एक प्रभावशाली रूप दिया गया है:–

१. भाषा:– पत्र के अंतर्गत भाषा एक विशेष तत्व होता है। पत्र की भाषा नर्म व शिष्ट होनी चाहिए। क्योंकि नर्म व शिष्ट पत्र ही पाठक को प्रभावित कर सकते हैं। जैसे:– कृपया, धन्यवाद आदि शब्दों का प्रयोग करके पाठक के मन को सीधे पत्र लिखने की भावना का महसूस कराना चाहिए। इसी भाषा और शब्दों के माध्यम से भाषा को पत्र लेखन में विशेष महत्व मिलता है।

२. संक्षिप्त:– वर्तमान युग में प्रत्येक व्यक्ति के लिए धन अधिक मूल्यवान लगता है, किंतु वर्तमान युग में प्रत्येक व्यक्ति के लिए समय भी धन के समान मूल्यवान होता है। इसी कारण व्यर्थ के लंबे पत्र लेखक व पाठक दोनों का अमूल्य समय को व्यर्थ में नष्ट करते हैं। अपने मुख्य बातों को बिना संकोच के लिखा जाना चाहिए। अनावश्यक रूप से लंबे शब्दों को लिखने का परित्याग करना चाहिए।

३. स्वच्छता:– पत्र की भाषा स्पष्ट व सरल होनी चाहिए। इसके साथ ही पत्र को साफ कागज पर अक्षरों का ध्यान रखते हुए साफ-साफ लिखना चाहिए। यदि पत्र टाइप किया गया हो तो उसमें कोई गलती या काट–पीट नहीं होनी चाहिए क्योंकि यह सभी गलती पाठक को अप्रिय लगती है तथा यह संशय भी उत्पन्न करती है।

४. रूचिपूर्ण:– पत्र में रुचिपूर्ण एवं रोचकता के बिना पाठक को प्रभावित नहीं किया जा सकता, इसलिए पाठक के स्वभाव व सम्मान को ध्यान में रखते हुए पत्र को लिखना चाहिए। पत्र लिखते समय पाठक के संबंध में प्रयोग होने वाले शब्दों प्रिय, महोदय, आदरणीय आदि शब्दों का उपयोग करना चाहिए।

५. उद्देश्यपूर्ण:– पत्र को जिस उद्देश्य के लिए लिखा जा रहा हो, उस उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए आवश्यक बातों को पत्र के अंतर्गत लिखना चाहिए। पाठक का उद्देश्य पर ध्यान केंद्रित करने के लिए पत्र का उद्देश्यपूर्ण होना अति आवश्यक है।

पत्र लेखन के प्रकार:– 

विषय और उद्देश्य के अनुसार पत्र दो प्रकार के होते हैं।

१. औपचारिक पत्र

२. अनौपचारिक पत्र

औपचारिक पत्र और अनौपचारिक पत्र की जानकारी इस प्रकार है:– 

औपचारिक पत्र:– जो पत्र व्यक्तिगत रिश्ते–नाते से अलग किसी पदनाम को संबोधित होते हैं और जिनके प्रारूप में औचारिकता का निर्वाह आवश्यक है, वे इस श्रेणी में आते हैं। इसके अतिरिक्त औपचारिक पत्र में अनेक अंतर्गत पत्रों को भी शामिल किया गया है।

१. कार्यालयी पत्र

२. व्यावसायिक पत्र

३. सार्वजनिक पत्र

४. प्रार्थना पत्र

५. निमंत्रण पत्र

६. सरकारी पत्र

७. गैर सरकारी पत्र

८. किसी भी अधिकारी को पत्र

९. नौकरी के लिए आवेदन हेतु पत्र

१०. संपादक के नाम पत्र इत्यादि।

औपचारिक पत्र का प्रारूप इस प्रकार है :– 

१. औपचारिक पत्र की लिखने की शुरुआत बाएं ओर से की जाती है। सर्वप्रथम औपचारिक पत्र में ‘सेवा में’ यह शब्द लिखकर, तथा पत्र पाने वाले का नाम लिखकर, पत्र पाने वाले के लिए उचित संबोधन का प्रयोग किया जाता है। जैसे:– मान्यवर, श्रीमान, आदरणीय आदि शब्दों का प्रयोग किया जाता है।

२. इसके बाद पत्र में पत्र पाने वाले का पता, कंपनी, नाम आदि लिखा जाता है।

३. इसके बाद पत्र को जिस उद्देश्य के लिए लिखा जा रहा है उसके लिए ‘विषय ’ लिखना आवश्यक होता है।

४. विषय लिखने के बाद एक बार फिर से पत्र पाने वाले के लिए संबोधन शब्द का प्रयोग किया जाता है।

५. संबोधन को लिखने के बाद, पत्र के मुख्य विषय का विस्तृत में विस्तार किया जाता है।

६. मुख्य विषय पत्र का अंत करते समय उत्तर की प्रतीक्षा में, धन्यवाद, सधन्यवाद, शेष कुशल आदि शब्दों का प्रयोग करना चाहिए।

७. इसके बाद पत्र के अंतिम भाग में भवदीय, आपका आज्ञाकारी, आपका आभारी, आपका शिष्य इत्यादि शब्दों का प्रयोग करना चाहिए।

८. पत्र भेजने वाले का नाम, पता, कंपनी का नाम, दिनांक लिखना होता है।

९. अत: अंत में पत्र लिखने वाले के हस्ताक्षर किए जाते हैं।

औपचारिक पत्र को लिखने के लिए कौन-कौन से तत्व आवश्यक होते हैं:– 

१. मौलिकता:– पत्र की भाषा पूर्ण एवं मौलिक होनी चाहिए। पत्र सदैव उद्देश्य के अनुरूप ही लिखना चाहिए।

२. संक्षिप्तता:– आधुनिक युग में समय अत्यंत कीमती है। औपचारिक पत्र के लिए आवश्यक होता है कि मुख्य विषय को संक्षिप्त में परंतु पूर्ण रुप से लिखा जाना चाहिए।

३. योजनाबद्ध:– पत्र को लिखने से पहले, पत्र को तैयार करने के लिए योजना बनाना आवश्यक होता है। बिना योजना के पत्र का प्रारंभ व अंत अनुकूल रूप से नहीं हो पाता है।

४. पूर्णता:– पत्र को लिखते समय पूर्णता का भी ध्यान रखना जरूरी है। पत्र में समस्त बातें लिखने के बाद, महत्वपूर्ण दस्तावेजों को सलंगन करना आवश्यक होता है। अतः संपूर्ण पत्र पर विचार–विमर्श, मंथन करके ही पत्र लिखना प्रारंभ करना चाहिए।

५. आकर्षक:– पत्र को आकर्षक जैसा लिखना चाहिए, क्योंकि आकर्षक करने का तत्व पाठक को अत्यंत प्रभावित करता है। पत्र पढ़ने व देखने में सुंदर व आकर्षक होना चाहिए। पत्र साफ़ कागज पर सुंदर ढंग से टाइप किया गया हो। अनौपचारिक पत्र:– व्यक्तिगत नाते– रिश्ते वाले लोगों को पत्र लिखते समय औपचारिकता की अनिवार्यता नहीं होती। इन पत्रों के अंदर उन पत्रों को सम्मिलित किया जाता है, जो अपने सगे– संबंधियों को, मित्रों को, प्रियजनों को लिखे जाते हैं। उदाहरण के लिए:– पुत्र के माता– पिता को पत्र, बड़े भाई के द्वारा छोटे भाई को पत्र, बधाई पत्र, मित्र की सहायता हेतु पत्र, सुखद पत्र इत्यादि बहुत सारे पत्र अनौपचारिक पत्र के अंतर्गत आते हैं।

अनौपचारिक पत्र:– व्यक्तिगत रिश्ते-नाते वाले लोगों को पत्र लिखते समय औपचारिकता की अनिवार्यता नहीं होती। इन पत्रों के अंदर उन पत्रों को सम्मिलित किया जाता है, जो अपने सगे–संबंधियों को, मित्रों को, प्रियजनों को लिखे जाते हैं। उदाहरण के लिए:– पुत्र के माता–पिता को पत्र, बड़े भाई के द्वारा छोटे भाई को पत्र, बधाई पत्र, मित्र की सहायता हेतु पत्र, सुखद पत्र इत्यादि बहुत सारे पत्र अनौपचारिक पत्र के अंतर्गत आते हैं।

अनौपचारिक पत्र का प्रारूप इस प्रकार है:– 

१. इसमें सबसे पहले बाई और की तरफ पत्र भेजने वाले का ‘पता’ लिखा जाता है।

२. प्रेषक के पते के नीचे तिथि लिखी जाती है।

३. सिर्फ पत्र भेजने वाले का नाम नहीं लिखा जाता है। यदि आप अपने से बड़ों को पत्र लिख रहे हैं तो पूजनीय, आदरणीय, माननीय आदि शब्दों के साथ उनसे संबंध लिखते हैं। जैसे:– पूजनीय पिताजी। यदि अपने से छोटे हो या अपने बराबर के व्यक्ति को पत्र लिख रहे हैं तो उनके नाम के साथ प्रिय मित्र, मान्यवर इत्यादि शब्दों का प्रयोग किया जाता है।

४. तत्पश्चात इसके बाद पत्र का मुख्य भाग 2 अनुच्छेदों में लिखा जाता है।

५. पत्र के मुख्य भाग की समाप्ति धन्यवाद सहित लिखकर की जाती है।

६. अंत में स्नेही, प्रार्थी आदि शब्दों का प्रयोग करके हस्ताक्षर किए जाते हैं।

औपचारिक और अनौपचारिक पत्र में अंतर:– 

अनौपचारिक पत्र को लिखने के क्या उद्देश्य होते हैं:–

१. अनौपचारिक पत्र को लिखने का मुख्य उद्देश्य होता है अपने प्रियजनों को, अपने परिवारजनों को, सगे- संबंधियों को, मित्रजनों आदि को निजी संदेश भेजना।

२. जन्मदिन पर आमंत्रित करने हेतु, किसी भी निजी जन को बधाई देने हेतु, विवाह में आमंत्रित करने हेतु, शोक का सूचना देने हेतु, आदि के लिए अनौपचारिक पत्र का इस्तेमाल किया जाता है।

३. उत्साह, क्रोध, हर्ष, सुख, दुख, सलाह, नाराजगी, सहानुभूति इत्यादि को व्यक्त करने के लिए भी अनौपचारिक पत्र का सहारा लिया जाता है।

४. सभी अनौपचारिक कार्य के लिए अनौपचारिक पत्र का सहारा लिया जाता है।

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