NCERT Solutions for Class 9 Social Science Economics Chapter 3 निर्धनता एक चुनौती प्रश्न और उत्तर

अभ्यास

1. भारत में निर्धनता रेखा का आकलन कैसे किया जाता है?

उत्तर: भारत में निर्धनता रेखा का आकलन विभिन्न मानदंडों के आधार पर किया जाता है, जो आर्थिक और सामाजिक कारकों को ध्यान में रखते हैं। निर्धनता रेखा वह स्तर है, जिसके नीचे जीवन यापन करने वाले व्यक्तियों को बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति में कठिनाई होती है।

  1. आर्थिक मानदंड:
    • आय: निर्धनता रेखा का आकलन आमतौर पर मासिक या वार्षिक आय के आधार पर किया जाता है। यदि किसी व्यक्ति की आय इस रेखा से कम है, तो उसे गरीब माना जाता है।
    • खर्च: कुछ अध्ययन खर्च के आधार पर भी निर्धनता का आकलन करते हैं, जिसमें भोजन, आवास, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि पर होने वाले खर्च को शामिल किया जाता है।
  2. सामाजिक मानदंड:
    • शिक्षा: शिक्षा का स्तर भी निर्धनता के आकलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। शिक्षा की कमी से रोजगार के अवसर सीमित हो जाते हैं, जिससे निर्धनता बढ़ती है।
    • स्वास्थ्य: स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच और गुणवत्ता भी निर्धनता के स्तर को प्रभावित करती है। बीमारियों और स्वास्थ्य समस्याओं के कारण लोग काम करने में असमर्थ हो सकते हैं।
  3. राष्ट्रीय सर्वेक्षण:
    • भारत सरकार समय-समय पर राष्ट्रीय स्तर पर सर्वेक्षण करती है, जैसे कि राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (NSS), जो निर्धनता के स्तर का आकलन करने में मदद करता है। ये सर्वेक्षण विभिन्न राज्यों और क्षेत्रों में लोगों की आय और खर्च का डेटा इकट्ठा करते हैं।
  4. मल्टीडायमेंशनल पावर्टी इंडेक्स (MPI):
    • यह एक समग्र दृष्टिकोण है, जो केवल आय के बजाय कई कारकों को ध्यान में रखता है, जैसे कि शिक्षा, स्वास्थ्य, और जीवन स्तर। MPI का उपयोग यह समझने के लिए किया जाता है कि कितने लोग विभिन्न प्रकार की कमी का सामना कर रहे हैं।

उदाहरण:

  • यदि किसी व्यक्ति की मासिक आय ₹1,000 है और वह अपने परिवार के लिए बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर पा रहा है, तो उसे निर्धन माना जाएगा।

निष्कर्ष: निर्धनता रेखा का आकलन एक जटिल प्रक्रिया है, जिसमें आर्थिक और सामाजिक कारकों का समावेश होता है। यह न केवल आय पर निर्भर करता है, बल्कि शिक्षा, स्वास्थ्य, और जीवन स्तर जैसे अन्य पहलुओं को भी ध्यान में रखता है।

2. क्या आप समझते हैं कि निर्धनता आकलन का वर्तमान तरीका सही है?

उत्तर: निर्धनता आकलन का वर्तमान तरीका विभिन्न दृष्टिकोणों से देखा जा सकता है। यह एक महत्वपूर्ण विषय है क्योंकि यह न केवल आर्थिक स्थिति को दर्शाता है, बल्कि समाज के विभिन्न वर्गों की भलाई और विकास को भी प्रभावित करता है।

  1. वर्तमान तरीका: वर्तमान में निर्धनता का आकलन मुख्यतः आय के स्तर, उपभोग के पैटर्न, और जीवन स्तर के मानकों के आधार पर किया जाता है। यह तरीका कई देशों में अपनाया गया है, लेकिन यह हमेशा सटीक नहीं होता।
  2. सकारात्मक पहलू:
    • यह तरीका आर्थिक डेटा पर आधारित होता है, जो कि सटीकता प्रदान करता है।
    • यह विभिन्न सामाजिक-आर्थिक कारकों को ध्यान में रखता है, जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, और रोजगार।
  3. नकारात्मक पहलू:
    • केवल आय के स्तर पर ध्यान केंद्रित करने से अन्य महत्वपूर्ण कारक, जैसे सामाजिक असमानता और भौगोलिक भिन्नताएँ, अनदेखी हो जाती हैं।
    • यह तरीका कभी-कभी वास्तविकता को नहीं दर्शाता, क्योंकि कई लोग ऐसे होते हैं जो औपचारिक रूप से गरीब नहीं होते, लेकिन फिर भी आर्थिक रूप से संघर्ष कर रहे होते हैं।
  4. सुझाव:
    • निर्धनता के आकलन के लिए एक समग्र दृष्टिकोण अपनाना चाहिए, जिसमें न केवल आर्थिक डेटा, बल्कि सामाजिक और मनोवैज्ञानिक कारकों को भी शामिल किया जाए।
    • विभिन्न क्षेत्रों में किए गए सर्वेक्षणों और अध्ययन के परिणामों का उपयोग करके एक बहुआयामी निर्धनता सूचकांक विकसित किया जा सकता है।

इस प्रकार, वर्तमान निर्धनता आकलन का तरीका सही है, लेकिन इसे और अधिक समग्र और बहुआयामी बनाने की आवश्यकता है ताकि यह समाज के सभी वर्गों की वास्तविक स्थिति को सही तरीके से दर्शा सके।

3. भारत में 1993 से निर्धनता की प्रवृत्तियों पर चर्चा करें।

उत्तर: भारत में 1993 से निर्धनता की प्रवृत्तियाँ

भारत में निर्धनता की प्रवृत्तियों का अध्ययन करना महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह देश की सामाजिक और आर्थिक स्थिति को समझने में मदद करता है। 1993 से लेकर अब तक, भारत में निर्धनता की दर में कई बदलाव आए हैं, जो विभिन्न आर्थिक नीतियों, विकास कार्यक्रमों और वैश्विक आर्थिक परिवर्तनों के परिणामस्वरूप हुए हैं।

  1. 1990 के दशक की शुरुआत: 1991 में आर्थिक सुधारों के बाद, भारत ने एक नई आर्थिक नीति अपनाई, जिसने विदेशी निवेश को बढ़ावा दिया और औद्योगिकीकरण को तेज किया। इस समय, निर्धनता की दर में धीरे-धीरे कमी आई, लेकिन यह अभी भी उच्च स्तर पर थी।
  2. 2000 के दशक: इस दशक में, भारत ने कई सामाजिक कल्याण योजनाएँ शुरू कीं, जैसे कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA), जिसने ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बढ़ाए। इसके परिणामस्वरूप, ग्रामीण निर्धनता में कमी आई।
  3. 2010 के दशक: इस दशक में, भारत ने डिजिटल इंडिया और मेक इन इंडिया जैसी पहलों के माध्यम से विकास को गति दी। हालांकि, आर्थिक विकास के लाभ सभी वर्गों तक नहीं पहुँचे, जिससे शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में निर्धनता की दर में असमानता बनी रही।
  4. वर्तमान स्थिति (2020 और उसके बाद): कोविड-19 महामारी ने भारत में निर्धनता की स्थिति को और अधिक चुनौतीपूर्ण बना दिया। लॉकडाउन के कारण कई लोगों की नौकरियाँ गईं और आर्थिक गतिविधियाँ ठप हो गईं। इसके परिणामस्वरूप, निर्धनता की दर में वृद्धि हुई, विशेषकर उन वर्गों में जो पहले से ही कमजोर थे।

निष्कर्ष: भारत में निर्धनता की प्रवृत्तियाँ जटिल हैं और विभिन्न कारकों से प्रभावित होती हैं। आर्थिक सुधारों के बावजूद, सामाजिक सुरक्षा और कल्याण योजनाओं की आवश्यकता बनी हुई है ताकि निर्धनता को प्रभावी ढंग से कम किया जा सके। भविष्य में, नीति निर्माताओं को यह सुनिश्चित करना होगा कि विकास के लाभ सभी वर्गों तक पहुँचें और आर्थिक असमानता को कम किया जा सके।

सुझाव:

आर्थिक स्थिरता: आर्थिक नीतियों को स्थिर और समावेशी बनाना।

सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का विस्तार: कमजोर वर्गों के लिए अधिक योजनाएँ और सहायता।

शिक्षा और कौशल विकास: युवाओं को रोजगार के लिए तैयार करने के लिए कौशल विकास कार्यक्रमों में निवेश।

4. भारत में निर्धनता के प्रमुख कारणों पर चर्चा करें?

उत्तर: भारत में आर्थिक असमानता एक महत्वपूर्ण समस्या है। कुछ लोग अत्यधिक धनवान हैं, जबकि अधिकांश लोग गरीब हैं। यह असमानता सामाजिक और आर्थिक विकास में बाधा डालती है।

कृषि पर निर्भरता: भारत की अधिकांश जनसंख्या कृषि पर निर्भर है। कृषि में मौसम की अनिश्चितता, प्राकृतिक आपदाएँ, और बाजार में मूल्य में उतार-चढ़ाव निर्धनता को बढ़ाते हैं।

सरकारी नीतियों की कमी: कई बार सरकारी नीतियाँ और योजनाएँ प्रभावी नहीं होतीं, जिससे गरीबों को लाभ नहीं मिलता। यदि योजनाओं का सही तरीके से कार्यान्वयन नहीं होता है, तो उनका उद्देश्य पूरा नहीं होता।

महंगाई: महंगाई भी निर्धनता का एक प्रमुख कारण है। जब वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें बढ़ती हैं, तो गरीब परिवारों के लिए आवश्यक चीजें खरीदना मुश्किल हो जाता है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति और भी खराब हो जाती है।

सामाजिक और सांस्कृतिक कारक: जाति, धर्म, और लिंग के आधार पर भेदभाव भी निर्धनता को बढ़ाता है। कुछ समुदायों को रोजगार और शिक्षा के अवसरों में भेदभाव का सामना करना पड़ता है।

निष्कर्ष: भारत में निर्धनता को समाप्त करने के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं, और आर्थिक अवसरों में सुधार आवश्यक है। इसके साथ ही, सरकारी नीतियों का प्रभावी कार्यान्वयन और सामाजिक समानता को बढ़ावा देना भी महत्वपूर्ण है।

5. उन सामाजिक और आर्थिक समूहों की पहचान करें जो भारत में निर्धनता के समक्ष अधिक असुरक्षित हैं।

उत्तर: भारत में निर्धनता के समक्ष अधिक असुरक्षित सामाजिक और आर्थिक समूहों की पहचान करना महत्वपूर्ण है। निम्नलिखित समूह आमतौर पर निर्धनता के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं:

  1. महिलाएं: विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, महिलाएं अक्सर आर्थिक संसाधनों और निर्णय लेने की प्रक्रियाओं से बाहर होती हैं, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति कमजोर होती है।
  2. बाल श्रमिक: बच्चों को काम करने के लिए मजबूर किया जाता है, जिससे उनकी शिक्षा प्रभावित होती है और वे गरीबी के चक्र में फंस जाते हैं।
  3. अनुसूचित जातियाँ और जनजातियाँ: ये समूह अक्सर सामाजिक और आर्थिक भेदभाव का सामना करते हैं, जिससे उनकी विकास की संभावनाएँ सीमित होती हैं।
  4. किसान: छोटे और सीमांत किसान प्राकृतिक आपदाओं, बाजार की अस्थिरता और ऋण के बोझ के कारण निर्धनता के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं।
  5. शहरी गरीब: शहरी क्षेत्रों में रहने वाले गरीब लोग, जो झुग्गियों में रहते हैं, अक्सर रोजगार के अस्थिर स्रोतों पर निर्भर होते हैं और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी का सामना करते हैं।

निष्कर्ष

इन समूहों की पहचान करने से नीति निर्माताओं को लक्षित सहायता कार्यक्रम विकसित करने में मदद मिलती है, जिससे इनकी आर्थिक स्थिति में सुधार किया जा सके।

6. भारत में अंतर्राज्यीय निर्धनता में विविधता के कारण बताइए।

उत्तर: भारत में अंतर्राज्यीय निर्धनता में विविधता के कई कारण हैं, जो विभिन्न सामाजिक, आर्थिक, और भौगोलिक कारकों से प्रभावित होते हैं। यहाँ कुछ प्रमुख कारणों का उल्लेख किया गया है:

  1. आर्थिक विकास में असमानता: विभिन्न राज्यों में आर्थिक विकास की गति अलग-अलग होती है। जैसे कि, महाराष्ट्र और गुजरात जैसे औद्योगिक राज्यों में विकास दर अधिक है, जबकि बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में विकास की गति धीमी है। इससे निर्धनता का स्तर भी भिन्न होता है।
  2. शिक्षा और कौशल विकास: शिक्षा की उपलब्धता और गुणवत्ता भी निर्धनता में भिन्नता का एक महत्वपूर्ण कारण है। उच्च शिक्षा और कौशल विकास के अवसरों की कमी वाले राज्यों में लोग अधिक निर्धन होते हैं। उदाहरण के लिए, केरल में उच्च साक्षरता दर है, जो वहां की आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाती है।
  3. कृषि पर निर्भरता: कुछ राज्यों की अर्थव्यवस्था कृषि पर अधिक निर्भर है, जैसे कि उत्तर प्रदेश और बिहार। कृषि में मौसम की अनिश्चितता और प्राकृतिक आपदाओं का प्रभाव इन राज्यों में निर्धनता को बढ़ा सकता है।
  4. संरचनात्मक मुद्दे: कुछ राज्यों में बुनियादी ढांचे की कमी, जैसे कि सड़कें, बिजली, और स्वास्थ्य सेवाएँ, आर्थिक विकास को प्रभावित करती हैं। यह स्थिति निर्धनता को बढ़ाने में सहायक होती है।
  5. सामाजिक कारक: जाति, धर्म, और सामाजिक संरचना भी निर्धनता में भिन्नता को प्रभावित करते हैं। कुछ समुदायों को ऐतिहासिक रूप से विकास के अवसरों से वंचित रखा गया है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति कमजोर बनी रहती है।
  6. राजनीतिक स्थिरता: राजनीतिक स्थिरता और शासन की गुणवत्ता भी महत्वपूर्ण हैं। जिन राज्यों में राजनीतिक अस्थिरता या भ्रष्टाचार अधिक है, वहां विकास की गति धीमी होती है, जिससे निर्धनता बढ़ती है।

निष्कर्ष: भारत में अंतर्राज्यीय निर्धनता की विविधता एक जटिल समस्या है, जो कई कारकों से प्रभावित होती है। इसके समाधान के लिए समग्र विकास नीतियों की आवश्यकता है, जो सभी राज्यों में समान अवसर प्रदान करें।

7. वैश्विक निर्धनता की प्रवृत्तियों पर चर्चा करें।

उत्तर: वैश्विक निर्धनता की प्रवृत्तियाँ

वैश्विक निर्धनता एक गंभीर समस्या है जो विभिन्न देशों और क्षेत्रों में विभिन्न रूपों में प्रकट होती है। यह समस्या केवल आर्थिक पहलुओं तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सामाजिक, राजनीतिक और पर्यावरणीय कारकों से भी प्रभावित होती है।

  1. आर्थिक प्रवृत्तियाँ:
    • वैश्विक स्तर पर, निर्धनता की दर में कमी आई है, लेकिन यह असमान रूप से फैली हुई है। विकासशील देशों में, विशेष रूप से उप-सहारा अफ्रीका में, निर्धनता की दर अभी भी उच्च है।
    • COVID-19 महामारी ने आर्थिक असमानताओं को बढ़ाया है, जिससे लाखों लोग गरीबी में गिर गए हैं।
  2. सामाजिक प्रवृत्तियाँ:
    • शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी निर्धनता को बढ़ावा देती है। शिक्षा के अभाव में, लोग बेहतर रोजगार के अवसरों से वंचित रह जाते हैं।
    • महिलाओं और अल्पसंख्यक समूहों के प्रति भेदभाव भी निर्धनता को बढ़ाता है।
  3. राजनीतिक प्रवृत्तियाँ:
    • राजनीतिक अस्थिरता और भ्रष्टाचार निर्धनता को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जब सरकारें प्रभावी ढंग से काम नहीं करतीं, तो संसाधनों का वितरण असमान हो जाता है।
    • लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की कमी भी निर्धनता को बढ़ा सकती है, क्योंकि लोगों की आवाज़ें अनसुनी रह जाती हैं।
  4. पर्यावरणीय प्रवृत्तियाँ:
    • जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदाएँ निर्धनता को बढ़ा सकती हैं। जब प्राकृतिक संसाधनों का क्षय होता है, तो गरीब समुदायों पर इसका सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है।
    • कृषि पर निर्भरता वाले क्षेत्रों में, जलवायु परिवर्तन से फसल उत्पादन में कमी आती है, जिससे खाद्य सुरक्षा संकट उत्पन्न होता है।

निष्कर्ष: वैश्विक निर्धनता की प्रवृत्तियाँ जटिल और बहुआयामी हैं। इसे समाप्त करने के लिए समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें आर्थिक विकास, सामाजिक न्याय, राजनीतिक स्थिरता और पर्यावरणीय संरक्षण शामिल हैं।

सुझाव:

जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए नीतियाँ बनाना।

शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में निवेश बढ़ाना।

महिलाओं और अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करना।

भ्रष्टाचार के खिलाफ ठोस कदम उठाना।

8. निर्धनता उन्मूलन की वर्तमान सरकारी नीतियों पर चर्चा करें।

उत्तर: निर्धनता उन्मूलन की वर्तमान सरकारी नीतियाँ

भारत सरकार ने निर्धनता उन्मूलन के लिए कई नीतियाँ और कार्यक्रम लागू किए हैं। इन नीतियों का उद्देश्य गरीबों को आर्थिक सहायता प्रदान करना, रोजगार के अवसर बढ़ाना, और सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करना है। यहाँ कुछ प्रमुख नीतियों का उल्लेख किया गया है:

  1. महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA): यह कानून ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार की गारंटी प्रदान करता है। इसके तहत, हर परिवार को साल में 100 दिन का काम दिया जाता है, जिससे उन्हें आर्थिक स्थिरता मिलती है।
  2. प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY): इस योजना के तहत, गरीबों को सस्ते घर उपलब्ध कराए जाते हैं। इसका उद्देश्य सभी के लिए आवास सुनिश्चित करना है।
  3. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA): इस अधिनियम के तहत, गरीब परिवारों को सस्ते दर पर खाद्यान्न उपलब्ध कराया जाता है। यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी व्यक्ति भूखा न रहे।
  4. स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार योजना: यह योजना शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी को कम करने के लिए रोजगार के अवसर प्रदान करती है।
  5. सामाजिक सुरक्षा योजनाएँ: जैसे कि प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना और प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना, जो गरीबों को स्वास्थ्य और जीवन बीमा प्रदान करती हैं।
  6. कौशल विकास कार्यक्रम: सरकार ने विभिन्न कौशल विकास कार्यक्रम शुरू किए हैं, जैसे कि प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना, ताकि युवाओं को रोजगार के लिए आवश्यक कौशल सिखाया जा सके।
  7. आधार कार्ड और डिजिटल इंडिया: आधार कार्ड के माध्यम से सरकारी लाभों का वितरण सुनिश्चित किया गया है, जिससे भ्रष्टाचार कम हुआ है और लाभ सीधे जरूरतमंदों तक पहुँचता है।

निष्कर्ष: इन नीतियों का उद्देश्य निर्धनता को कम करना और समाज के कमजोर वर्गों को सशक्त बनाना है। हालांकि, इन नीतियों की प्रभावशीलता को सुनिश्चित करने के लिए निरंतर निगरानी और सुधार की आवश्यकता है।

9. मानव निर्धनता से आप क्या समझते हैं?

उत्तर: मानव निर्धनता का अर्थ:

मानव निर्धनता से तात्पर्य है उन परिस्थितियों से, जिनमें व्यक्ति या समुदाय आर्थिक, सामाजिक और भौतिक संसाधनों की कमी के कारण अपने जीवन की आवश्यकताओं को पूरा करने में असमर्थ होते हैं। यह केवल आय की कमी तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण, और सामाजिक सुरक्षा जैसे विभिन्न पहलुओं का समावेश होता है।

उदाहरण:

  1. आर्थिक निर्धनता: जब किसी व्यक्ति की आय इतनी कम होती है कि वह अपने और अपने परिवार के लिए बुनियादी आवश्यकताओं जैसे भोजन, आवास और कपड़े की व्यवस्था नहीं कर सकता।
  2. शैक्षिक निर्धनता: जब बच्चे स्कूल नहीं जा पाते हैं या उन्हें गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं मिलती, जिससे उनके भविष्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
  3. स्वास्थ्य निर्धनता: जब लोग स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच नहीं बना पाते, जिससे उनकी स्वास्थ्य स्थिति बिगड़ती है।

निष्कर्ष: मानव निर्धनता एक जटिल समस्या है, जो केवल आर्थिक कारकों से नहीं, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक कारकों से भी प्रभावित होती है। इसे समाप्त करने के लिए समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, और सामाजिक सुरक्षा के क्षेत्रों में सुधार शामिल है।

सुझाव:

सामुदायिक विकास कार्यक्रमों को प्रोत्साहित करना चाहिए, ताकि लोग अपने जीवन स्तर को सुधार सकें।

सरकारों और संगठनों को निर्धनता उन्मूलन के लिए ठोस नीतियाँ बनानी चाहिए।

शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की पहुँच को बढ़ाना आवश्यक है।

10. निर्धनता में सबसे अधिक निर्धन कौन हैं?

उत्तर: निर्धनता में सबसे अधिक निर्धन वे लोग होते हैं जो निम्नलिखित श्रेणियों में आते हैं:

  1. कृषक और श्रमिक: छोटे किसान और दैनिक मजदूर, जिनकी आय बहुत कम होती है और जो अक्सर आर्थिक असुरक्षा का सामना करते हैं।
  2. महिलाएं: विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में, महिलाएं अक्सर आर्थिक गतिविधियों में कम भागीदारी करती हैं और उनके पास सीमित संसाधन होते हैं।
  3. बच्चे: शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी के कारण, बच्चे अक्सर निर्धनता के चक्र में फंसे रहते हैं।
  4. विकलांग व्यक्ति: शारीरिक या मानसिक विकलांगता वाले लोग अक्सर रोजगार के अवसरों से वंचित रहते हैं और आर्थिक रूप से कमजोर होते हैं।
  5. जाति और समुदाय: कुछ जातियाँ और समुदाय, विशेषकर जो ऐतिहासिक रूप से हाशिए पर रहे हैं, अधिक निर्धनता का सामना करते हैं।

इन समूहों के लिए विशेष नीतियों और कार्यक्रमों की आवश्यकता होती है ताकि उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार किया जा सके और उन्हें मुख्यधारा में लाया जा सके।

11. महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, 2005 की प्रमुख विशेषताएँ कौन–सी हैं?

उत्तर: महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA), 2005, भारत सरकार द्वारा लागू किया गया एक महत्वपूर्ण कानून है, जिसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर प्रदान करना है। इस अधिनियम की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:

  1. न्यूनतम रोजगार की गारंटी: यह अधिनियम प्रत्येक ग्रामीण परिवार को एक वित्तीय वर्ष में 100 दिन का रोजगार सुनिश्चित करता है।
  2. वेतन का भुगतान: काम के लिए मजदूरी का भुगतान न्यूनतम मजदूरी दर पर किया जाता है, जो कि राज्य सरकार द्वारा निर्धारित की जाती है।
  3. कार्य की प्रकृति: अधिनियम के तहत प्रदान किए जाने वाले कार्यों में जल संरक्षण, भूमि विकास, वृक्षारोपण, और ग्रामीण अवसंरचना का निर्माण शामिल हैं।
  4. महिलाओं के लिए विशेष प्रावधान: इस अधिनियम में महिलाओं को 33% आरक्षण दिया गया है, जिससे उन्हें रोजगार के अवसरों में समानता मिल सके।
  5. स्थानीय स्वशासन: ग्राम पंचायतों को कार्यों के चयन और कार्यान्वयन में महत्वपूर्ण भूमिका दी गई है, जिससे स्थानीय जरूरतों के अनुसार काम किया जा सके।
  6. सूचना का अधिकार: इस अधिनियम के तहत, सभी कार्यों और उनके भुगतान की जानकारी सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराई जाती है, जिससे पारदर्शिता बढ़ती है।
  7. निगरानी और शिकायत निवारण तंत्र: इस अधिनियम के तहत निगरानी के लिए एक तंत्र स्थापित किया गया है, जिससे शिकायतों का समाधान किया जा सके।

MGNREGA का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी को कम करना और ग्रामीण विकास को बढ़ावा देना है। यह अधिनियम न केवल रोजगार प्रदान करता है, बल्कि ग्रामीण समुदायों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार लाने में भी सहायक है।

12. उपभोग आधारित निर्धनता रेखा और राष्ट्रीय बहुआयामी निर्धनता सूचकांक आधारित निर्धनता अनुमानों के बीच अंतर बताइए।

उत्तर: उपभोग आधारित निर्धनता रेखा और राष्ट्रीय बहुआयामी निर्धनता सूचकांक आधारित निर्धनता अनुमानों के बीच अंतर

  1. उपभोग आधारित निर्धनता रेखा:
    • यह एक आर्थिक माप है जो यह निर्धारित करती है कि एक व्यक्ति या परिवार को न्यूनतम आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कितनी आय की आवश्यकता है।
    • इसे आमतौर पर खाद्य और गैर-खाद्य खर्चों के आधार पर निर्धारित किया जाता है।
    • उदाहरण के लिए, यदि एक व्यक्ति को प्रतिदिन 32 रुपये (शहरी क्षेत्रों में) या 27 रुपये (ग्रामीण क्षेत्रों में) खर्च करने की आवश्यकता है, तो यह उपभोग आधारित निर्धनता रेखा के अंतर्गत आता है।
  2. राष्ट्रीय बहुआयामी निर्धनता सूचकांक (MPI):
    • यह एक व्यापक माप है जो निर्धनता के विभिन्न आयामों को ध्यान में रखता है, जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, और जीवन स्तर।
    • MPI में, निर्धनता केवल आय के आधार पर नहीं, बल्कि विभिन्न सामाजिक और आर्थिक कारकों के आधार पर मापी जाती है।
    • उदाहरण के लिए, यदि किसी व्यक्ति के पास शिक्षा की कमी है, स्वास्थ्य सेवाओं की पहुँच नहीं है, और बुनियादी सुविधाओं का अभाव है, तो वह MPI के अनुसार निर्धन माना जाएगा, भले ही उसकी आय उपभोग आधारित रेखा के ऊपर हो।
  3. मुख्य अंतर:
    • उपभोग आधारित निर्धनता रेखा मुख्य रूप से आर्थिक दृष्टिकोण से निर्धनता को मापती है, जबकि MPI सामाजिक और आर्थिक दोनों दृष्टिकोणों को सम्मिलित करता है।
    • उपभोग आधारित रेखा केवल आय पर केंद्रित है, जबकि MPI में शिक्षा, स्वास्थ्य, और जीवन स्तर जैसे अन्य कारकों को भी शामिल किया जाता है।

निष्कर्ष: उपभोग आधारित निर्धनता रेखा और MPI दोनों ही निर्धनता के मापने के तरीके हैं, लेकिन उनके दृष्टिकोण और मापने के मानदंड भिन्न हैं। MPI एक अधिक समग्र दृष्टिकोण प्रदान करता है, जो केवल आर्थिक स्थिति से परे जाकर सामाजिक कल्याण को भी ध्यान में रखता है।

13. भारत में बहुआयामी निर्धनता आकलन के लिए प्रमुख सूचकों की सूची बनाइए।

उत्तर: भारत में बहुआयामी निर्धनता आकलन के लिए प्रमुख सूचकों की सूची निम्नलिखित है:

  1. आर्थिक स्थिति:
    • आय का स्तर
    • रोजगार की स्थिति
    • संपत्ति का स्वामित्व
  2. शिक्षा:
    • शिक्षा का स्तर (प्राथमिक, माध्यमिक, उच्च शिक्षा)
    • स्कूल में नामांकन की दर
    • शिक्षा की गुणवत्ता
  3. स्वास्थ्य:
    • पोषण की स्थिति (कुपोषण दर)
    • स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच
    • मातृ और शिशु मृत्यु दर
  4. पानी और स्वच्छता:
    • स्वच्छ पेयजल की उपलब्धता
    • स्वच्छता सुविधाओं का उपयोग
  5. आवास:
    • आवास की गुणवत्ता (कच्चे या पक्के घर)
    • आवास की स्थिरता
  6. सामाजिक सुरक्षा:
    • सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का लाभ
    • बीमा कवरेज
  7. सामाजिक समावेश:
    • जाति और लिंग के आधार पर भेदभाव
    • सामाजिक नेटवर्क और समर्थन

इन सूचकों का उपयोग बहुआयामी निर्धनता के स्तर को समझने और आकलन करने के लिए किया जाता है। यह सूचकों का समूह एक व्यक्ति या परिवार की समग्र स्थिति को दर्शाता है, जो केवल आय के स्तर पर निर्भर नहीं करता, बल्कि उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं को भी ध्यान में रखता है।

सुझाव:

स्थानीय स्तर पर डेटा संग्रह: स्थानीय स्तर पर डेटा संग्रहण से अधिक सटीकता प्राप्त की जा सकती है, जिससे नीतियों को अधिक प्रभावी बनाया जा सके।

नीतिगत सुधार: इन सूचकों के आधार पर नीतियों में सुधार किया जा सकता है ताकि निर्धनता को कम किया जा सके।

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