अभ्यास के प्रश्न
1. भारत में खाद्य सुरक्षा कैसे सुनिश्चित की जाती है?
उत्तर: भारत में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए निम्नलिखित उपाय किए गए हैं:
- बफर स्टॉक निर्माण: भारत सरकार द्वारा खाद्य सुरक्षा की पूर्ति हेतु बफर स्टॉक का निर्माण किया गया है। बफर स्टॉक सरकार द्वारा गेंहूँ और चावल का अधिप्राप्त भंडार है। यह अनाज आपातकालीन स्थितियों में वितरित किया जाता है।
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS): भारतीय खाद्य निगम (FCI) द्वारा किसानों से अधिप्राप्त अनाज को समाज के गरीब वर्गों में राशन की दुकानों के माध्यम से वितरित किया जाता है। यह प्रणाली गरीबों को बाजार मूल्य से कम कीमत पर अनाज उपलब्ध कराती है।
इन उपायों के माध्यम से, सरकार खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करती है और समाज के कमजोर वर्गों को आवश्यक खाद्य सामग्री प्रदान करती है।
2. कौन लोग खाद्य असुरक्षा से अधिक ग्रस्त हो सकते हैं?
उत्तर: खाद्य असुरक्षा एक जटिल समस्या है, जो विभिन्न सामाजिक, आर्थिक और भौगोलिक कारकों से प्रभावित होती है। निम्नलिखित समूह खाद्य असुरक्षा से अधिक ग्रस्त हो सकते हैं:
- गरीब और निम्न आय वर्ग:
- आर्थिक रूप से कमजोर परिवार, जिनकी आय खाद्य आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अपर्याप्त होती है।
- महिलाएँ और बच्चे:
- विशेष रूप से एकल माताएँ और छोटे बच्चों वाले परिवार, जो पोषण की कमी का सामना करते हैं।
- गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाएँ भी खाद्य असुरक्षा का शिकार हो सकती हैं।
- आदिवासी और ग्रामीण समुदाय:
- आदिवासी क्षेत्रों में रहने वाले लोग, जहाँ संसाधनों की कमी और कृषि उत्पादन की कमी होती है।
- ग्रामीण समुदाय जो कृषि पर निर्भर होते हैं, लेकिन प्राकृतिक आपदाओं या जलवायु परिवर्तन के कारण प्रभावित होते हैं।
- विकलांग व्यक्ति:
- शारीरिक या मानसिक विकलांगता वाले लोग, जो काम करने में असमर्थ होते हैं और खाद्य सुरक्षा के लिए अधिक निर्भर होते हैं।
- बुजुर्ग लोग:
- वृद्ध व्यक्ति, जो अक्सर आर्थिक और शारीरिक रूप से कमजोर होते हैं और उनके पास पर्याप्त संसाधन नहीं होते।
- शहरी झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले लोग:
- शहरी क्षेत्रों में झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले लोग, जो अस्थायी रोजगार पर निर्भर होते हैं और खाद्य सुरक्षा के लिए संघर्ष करते हैं।
- संक्रामक रोगों से प्रभावित लोग:
- ऐसे लोग जो एचआईवी/एड्स, टीबी या अन्य गंभीर बीमारियों से ग्रस्त हैं, उन्हें भी खाद्य असुरक्षा का सामना करना पड़ सकता है।
इन समूहों को खाद्य असुरक्षा से बचाने के लिए विभिन्न सरकारी योजनाएँ और कार्यक्रम लागू किए जा रहे हैं, जिनमें पोषण संबंधी सहायता, खाद्य वितरण कार्यक्रम और शिक्षा शामिल हैं।
3. भारत में कौन से राज्य खाद्य असुरक्षा से अधिक ग्रस्त हैं?
उत्तर: भारत में खाद्य असुरक्षा एक गंभीर समस्या है, जो विभिन्न राज्यों में अलग-अलग स्तरों पर देखी जाती है। निम्नलिखित राज्य खाद्य असुरक्षा से अधिक ग्रस्त माने जाते हैं:
- बिहार: यहाँ की जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहा है। आर्थिक और सामाजिक कारकों के कारण यहाँ खाद्य वितरण में कमी है।
- उत्तरी पूर्वी राज्य: जैसे कि मणिपुर, मेघालय, और नागालैंड। इन राज्यों में खाद्य उत्पादन की कमी और भौगोलिक चुनौतियों के कारण खाद्य असुरक्षा अधिक है।
- झारखंड: यहाँ भी खाद्य असुरक्षा की समस्या गंभीर है, खासकर आदिवासी क्षेत्रों में।
- उतर प्रदेश: यहाँ की बड़ी जनसंख्या और कृषि पर निर्भरता के बावजूद, कई क्षेत्रों में खाद्य असुरक्षा देखी जाती है।
- ओडिशा: यहाँ भी खाद्य असुरक्षा की समस्या है, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में।
- राजस्थान: सूखे और जल संकट के कारण यहाँ खाद्य असुरक्षा की स्थिति बनी रहती है।
इन राज्यों में खाद्य असुरक्षा के कारणों में गरीबी, शिक्षा की कमी, कृषि संसाधनों की कमी, और सामाजिक असमानताएँ शामिल हैं। सरकार और विभिन्न संगठनों द्वारा इन समस्याओं के समाधान के लिए कई योजनाएँ और कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं।
4. क्या आप मानते हैं कि हरित क्रांति ने भारत को खाद्यान्न में आत्मनिर्भर बना दिया है? कैसे?
उत्तर: हरित क्रांति और खाद्यान्न आत्मनिर्भरता
हरित क्रांति, जो 1960 के दशक के अंत में शुरू हुई, ने भारत को खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस क्रांति के दौरान, उच्च उपज देने वाली किस्मों (HYVs) के बीजों का उपयोग, रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के साथ मिलकर किया गया, जिससे गेहूं और चावल की उत्पादन क्षमता में भारी वृद्धि हुई।
मुख्य बिंदु:
- उत्पादन में वृद्धि: हरित क्रांति के परिणामस्वरूप, गेहूं और चावल का उत्पादन तेजी से बढ़ा। उदाहरण के लिए, पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में गेहूं का उत्पादन 1964-65 में 7.23 मिलियन टन से बढ़कर 1995-96 में 30.33 मिलियन टन हो गया।
- आर्थिक आत्मनिर्भरता: पहले भारत खाद्यान्न के लिए अन्य देशों पर निर्भर था, लेकिन हरित क्रांति के बाद, भारत ने खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल की। इससे खाद्य सुरक्षा में सुधार हुआ और आयात की आवश्यकता कम हो गई।
- बफर स्टॉक में वृद्धि: हरित क्रांति के बाद, भारत में बफर स्टॉक में खाद्यान्न की मात्रा में वृद्धि हुई। इससे सरकार को आपात स्थितियों में खाद्य आपूर्ति सुनिश्चित करने में मदद मिली।
- सामाजिक प्रभाव: हालांकि हरित क्रांति ने खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि की, लेकिन यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि सभी वर्गों के लिए समान लाभ नहीं हुआ। कई गरीब और हाशिए पर रहने वाले समुदाय अभी भी खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे हैं।
निष्कर्ष: हरित क्रांति ने भारत को खाद्यान्न में आत्मनिर्भर बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, लेकिन इसके साथ ही यह भी आवश्यक है कि सरकार और समाज मिलकर खाद्य असुरक्षा के मुद्दों को हल करने के लिए प्रयास करें, ताकि सभी वर्गों को इसका लाभ मिल सके।
5. भारत में लोगों का एक वर्ग आज भी खाद्य से वंचित है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर: भारत में खाद्य सुरक्षा एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, और इसके बावजूद, कुछ लोग आज भी खाद्य से वंचित हैं। इसके पीछे कई कारण हैं:
- आर्थिक असमानता: भारत में गरीबी एक प्रमुख कारण है। बहुत से लोग, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में, भूमिहीन हैं या उनके पास सीमित संसाधन हैं, जिससे वे पर्याप्त भोजन खरीदने में असमर्थ हैं।
- सामाजिक असमानता: अनुसूचित जातियों (SC), अनुसूचित जनजातियों (ST) और अन्य पिछड़े वर्गों (OBC) के लोग अक्सर खाद्य असुरक्षा का सामना करते हैं। ये समूह अक्सर आर्थिक रूप से कमजोर होते हैं और उनके पास खाद्य सुरक्षा के लिए आवश्यक संसाधनों की कमी होती है।
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली की कमी: भारत में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के माध्यम से खाद्य सामग्री का वितरण किया जाता है, लेकिन कई बार यह प्रणाली भ्रष्टाचार और अनियमितताओं का शिकार होती है। राशन की दुकानों पर अनाज की कमी या खराब गुणवत्ता भी एक समस्या है।
- प्राकृतिक आपदाएँ: सूखा, बाढ़ और अन्य प्राकृतिक आपदाएँ खाद्य उत्पादन को प्रभावित करती हैं, जिससे खाद्य संकट उत्पन्न होता है। जब फसलें बर्बाद होती हैं, तो खाद्य सामग्री की उपलब्धता कम हो जाती है, जिससे गरीब लोगों को अधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
- स्वास्थ्य और पोषण की कमी: गर्भवती महिलाएँ और छोटे बच्चे अक्सर पोषण की कमी का शिकार होते हैं। यह स्थिति उनके स्वास्थ्य को प्रभावित करती है और उन्हें खाद्य सुरक्षा से वंचित कर देती है।
इन सभी कारणों के चलते, भारत में एक बड़ा वर्ग आज भी खाद्य से वंचित है, और इसे दूर करने के लिए सरकार और समाज को मिलकर प्रयास करने की आवश्यकता है।
सामुदायिक सहयोग: स्थानीय स्तर पर सहकारी समितियों और एनजीओ को खाद्य सुरक्षा में मदद करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
सरकारी योजनाओं का सुधार: PDS को अधिक पारदर्शी और प्रभावी बनाने की आवश्यकता है।
सामाजिक सुरक्षा योजनाएँ: गरीबों के लिए विशेष योजनाएँ लागू की जानी चाहिए, जैसे कि अंत्योदय अन्न योजना।
6. जब कोई आपदा आती है तो खाद्य पूर्ति पर क्या प्रभाव होता है?
उत्तर: जब कोई आपदा आती है, जैसे कि प्राकृतिक आपदाएँ (भूकंप, बाढ़, सूखा) या अन्य संकट (जैसे महामारी), तो खाद्य पूर्ति पर कई नकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं:
- उत्पादन में कमी: आपदा के कारण कृषि उत्पादन में गिरावट आती है। उदाहरण के लिए, सूखे के कारण फसलों की पैदावार में कमी हो सकती है, जिससे खाद्य सामग्री की उपलब्धता कम हो जाती है।
- मूल्य वृद्धि: जब खाद्य सामग्री की आपूर्ति कम होती है, तो बाजार में खाद्य वस्तुओं की कीमतें बढ़ जाती हैं। इससे गरीब और निम्न आय वर्ग के लोगों के लिए खाद्य सामग्री खरीदना और भी कठिन हो जाता है।
- भुखमरी का खतरा: यदि आपदा का प्रभाव लंबे समय तक बना रहता है, तो यह भुखमरी की स्थिति उत्पन्न कर सकता है। विशेष रूप से, गरीब वर्ग के लोग जो पहले से ही खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे हैं, वे सबसे अधिक प्रभावित होते हैं।
- जमाखोरी और कालाबाजारी: आपदा के समय खाद्य सामग्री की कमी होने पर, कुछ लोग जमाखोरी करने लगते हैं, जिससे बाजार में खाद्य वस्तुओं की और भी कमी हो जाती है। इससे कालाबाजारी की स्थिति उत्पन्न होती है, जहाँ खाद्य वस्तुएँ अधिक कीमत पर बेची जाती हैं।
- सामाजिक अस्थिरता: खाद्य संकट के कारण सामाजिक अस्थिरता भी बढ़ सकती है, जिससे दंगे और संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
इन प्रभावों को कम करने के लिए, सरकारों को आपदा प्रबंधन योजनाएँ बनानी चाहिए और खाद्य सुरक्षा के लिए प्रभावी उपायों को लागू करना चाहिए, जैसे कि बफर स्टॉक का निर्माण और सार्वजनिक वितरण प्रणाली का सुधार।
7. मौसमी भुखमरी और दीर्घकालिक भुखमरी में भेद कीजिए?
उत्तर: मौसमी भुखमरी और दीर्घकालिक भुखमरी में भेद:
मौसमी भुखमरी:
- परिभाषा: मौसमी भुखमरी उस स्थिति को दर्शाती है जो कृषि उत्पादन के चक्रों के कारण उत्पन्न होती है। यह आमतौर पर फसल की कटाई और बुवाई के समय की कमी के कारण होती है।
- कारण: यह भुखमरी मुख्यतः उन क्षेत्रों में होती है जहाँ कृषि आधारित रोजगार होते हैं। जैसे, जब फसलें तैयार नहीं होती हैं, तब श्रमिकों को काम नहीं मिलता और वे भोजन की कमी का सामना करते हैं।
- उदाहरण: ग्रामीण क्षेत्रों में, जब फसलें कटने के बाद की अवधि होती है, तब श्रमिकों को काम नहीं मिलता और उन्हें भोजन की कमी का सामना करना पड़ता है।
दीर्घकालिक भुखमरी:
- परिभाषा: दीर्घकालिक भुखमरी एक ऐसी स्थिति है जो निरंतर कम आय और पोषण की कमी के कारण उत्पन्न होती है। यह एक स्थायी समस्या है जो लोगों को लंबे समय तक प्रभावित करती है।
- कारण: यह भुखमरी उन लोगों में होती है जिनकी आय इतनी कम होती है कि वे आवश्यक भोजन भी नहीं खरीद सकते। यह समस्या अक्सर आर्थिक असमानता और सामाजिक स्थिति के कारण होती है।
- उदाहरण: शहरी क्षेत्रों में, गरीब लोग जो स्थायी रूप से कम आय पर निर्भर होते हैं, उन्हें भोजन खरीदने में कठिनाई होती है, जिससे वे दीर्घकालिक भुखमरी का सामना करते हैं।
निष्कर्ष: मौसमी भुखमरी और दीर्घकालिक भुखमरी के बीच मुख्य अंतर यह है कि मौसमी भुखमरी फसल के चक्रों से संबंधित होती है, जबकि दीर्घकालिक भुखमरी आर्थिक और सामाजिक कारकों के कारण होती है।
8. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा देने के लिए सरकार ने क्या किया? सरकार की ओर से शुरू की गई किन्हीं दो योजनाओं की व्याख्या कीजिए।
उत्तर: राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा के लिए सरकार की योजनाएँ
भारत सरकार ने खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कई योजनाएँ शुरू की हैं। इनमें से दो प्रमुख योजनाएँ निम्नलिखित हैं:
- अंत्योदय अन्न योजना (AAY):
- यह योजना 2000 में शुरू की गई थी, जिसका उद्देश्य सबसे गरीब वर्ग के लोगों को खाद्य सुरक्षा प्रदान करना है।
- इस योजना के तहत, लाभार्थियों को प्रति परिवार 35 किलोग्राम खाद्यान्न दिया जाता है, जिसमें गेहूँ, चावल और अन्य अनाज शामिल होते हैं।
- यह योजना उन लोगों के लिए है जो गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे हैं, जैसे कि श्रमिक, भूमिहीन किसान, और अन्य कमजोर वर्ग।
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS):
- यह प्रणाली खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए एक महत्वपूर्ण तंत्र है।
- इसके अंतर्गत, सरकार खाद्यान्नों को उचित दर की दुकानों (Fair Price Shops) के माध्यम से गरीबों में वितरित करती है।
- PDS के तहत, सरकार द्वारा खरीदे गए अनाज को कम कीमत पर उपलब्ध कराया जाता है, जिससे गरीब वर्ग के लोगों को आवश्यक खाद्य सामग्री मिल सके।
निष्कर्ष: इन योजनाओं के माध्यम से, सरकार ने खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए एक मजबूत ढांचा तैयार किया है, जिससे गरीब और कमजोर वर्ग के लोगों को खाद्य सामग्री की उपलब्धता सुनिश्चित होती है।
9. सरकार भंडार स्टॉक क्यों बनाती है?
उत्तर: सरकार भंडार स्टॉक निम्नलिखित कारणों से बनाती है:
- खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए: भंडार स्टॉक का निर्माण यह सुनिश्चित करता है कि सभी वर्गों के लिए खाद्य सामग्री उपलब्ध हो सके।
- गरीब वर्गों में बाजार मूल्य से कम कीमत पर अनाज वितरण: सरकार भंडार स्टॉक का उपयोग गरीब वर्गों को अनाज वितरित करने के लिए करती है, ताकि वे बाजार मूल्य से कम कीमत पर खाद्य सामग्री प्राप्त कर सकें।
- आपदा के समय खाद्य आपूर्ति: प्राकृतिक आपदाओं या अन्य संकट के समय, भंडार स्टॉक का उपयोग प्रभावित क्षेत्रों में खाद्य सामग्री की आपूर्ति के लिए किया जाता है।
- किसानों की बाजार उतार-चढ़ावों से रक्षा: भंडार स्टॉक का एक अन्य मुख्य उद्देश्य किसानों को उनकी उपज के लिए पहले से निर्धारित कीमत प्रदान करना है, जिससे वे बाजार की अनिश्चितताओं से सुरक्षित रह सकें।
इस प्रकार, भंडार स्टॉक खाद्य सुरक्षा प्रणाली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो विभिन्न परिस्थितियों में खाद्य सामग्री की उपलब्धता सुनिश्चित करता है।
10. टिप्पणियाँ लिखें :
(क) न्यूनतम समर्थन मूल्य
(ख) बफर स्टॉक
(ग) निर्गम कीमत
(घ) उचित दर की दुकान
उत्तर: (क) न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Support Price)
न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) एक ऐसा मूल्य है जिसे सरकार किसानों को उनकी फसलों के लिए पहले से निर्धारित करती है। इसका मुख्य उद्देश्य किसानों को उनकी उपज के लिए उचित मूल्य सुनिश्चित करना है, ताकि वे कृषि में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित हों।
उद्देश्य:
- किसानों की सुरक्षा: MSP किसानों को बाजार में मूल्य में उतार-चढ़ाव से बचाता है। जब बाजार में फसलों की कीमतें गिरती हैं, तो MSP सुनिश्चित करता है कि किसान को एक निश्चित और सुरक्षित मूल्य मिले।
- उत्पादन को बढ़ावा: MSP की घोषणा फसल बोने से पहले की जाती है, जिससे किसान यह तय कर सकते हैं कि कौन सी फसल उगाना है। इससे कृषि उत्पादन में वृद्धि होती है।
उदाहरण:
- यदि सरकार ने गेहूं के लिए MSP 2,000 रुपये प्रति क्विंटल निर्धारित किया है, तो किसान को कम से कम 2,000 रुपये प्रति क्विंटल मिलेंगे, चाहे बाजार में गेहूं की कीमत कम हो जाए।
- यह प्रणाली विशेष रूप से उन फसलों के लिए महत्वपूर्ण है जो खाद्य सुरक्षा में योगदान करती हैं, जैसे गेहूं, चावल, और दलहन।
निष्कर्ष: न्यूनतम समर्थन मूल्य न केवल किसानों की आर्थिक सुरक्षा को सुनिश्चित करता है, बल्कि यह खाद्य सुरक्षा को भी मजबूत बनाता है। यह सुनिश्चित करता है कि किसान अपनी फसलें उगाने के लिए प्रोत्साहित हों और देश में खाद्यान्न की उपलब्धता बनी रहे।
(ख) बफर स्टॉक (Buffer Stock)
बफर स्टॉक एक महत्वपूर्ण तंत्र है जिसका उपयोग खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है। यह उस अनाज का भंडार है जिसे सरकार खाद्य निगम के माध्यम से किसानों से खरीदती है। बफर स्टॉक का मुख्य उद्देश्य खाद्य संकट के समय में खाद्य सामग्री की उपलब्धता सुनिश्चित करना है।
उद्देश्य:
- खाद्य सुरक्षा: बफर स्टॉक का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि किसी भी आपात स्थिति, जैसे प्राकृतिक आपदा या फसल विफलता के दौरान, खाद्य सामग्री की कमी न हो।
- मूल्य स्थिरता: यह किसानों को उनकी उपज के लिए एक निश्चित मूल्य प्रदान करता है, जिससे वे बाजार की उतार-चढ़ाव से सुरक्षित रहते हैं।
- गरीबों को सहायता: बफर स्टॉक से प्राप्त अनाज को सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के माध्यम से गरीब वर्गों में वितरित किया जाता है, जिससे उन्हें कम कीमत पर खाद्य सामग्री मिलती है।
उदाहरण:
- भारत में, सरकार ने गेहूं और चावल का बफर स्टॉक बनाया है, जिसे आपातकालीन स्थितियों में वितरित किया जाता है। उदाहरण के लिए, 2014 में, भारतीय खाद्य निगम ने 65.2 करोड़ टन का बफर स्टॉक रखा था, जो कि निर्धारित न्यूनतम बफर स्टॉक से अधिक था।
निष्कर्ष: बफर स्टॉक खाद्य सुरक्षा के लिए एक आवश्यक उपकरण है, जो न केवल खाद्य सामग्री की उपलब्धता सुनिश्चित करता है, बल्कि किसानों की आर्थिक सुरक्षा को भी बढ़ाता है। यह प्रणाली खाद्य असुरक्षा को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
(ग) निर्गम कीमत (Issue Price)
निर्गम कीमत वह मूल्य है जिस पर सरकार खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए खाद्यान्न का वितरण करती है। यह कीमत आमतौर पर बाजार मूल्य से कम होती है, जिससे गरीब वर्ग के लोगों को आवश्यक खाद्य सामग्री सस्ती दर पर उपलब्ध हो सके।
उदाहरण:
- यदि बाजार में चावल की कीमत 50 रुपये प्रति किलो है, तो सरकार इसे 30 रुपये प्रति किलो की दर पर उचित दर की दुकानों (Fair Price Shops) के माध्यम से वितरित कर सकती है।
- यह प्रणाली विशेष रूप से उन क्षेत्रों में महत्वपूर्ण है जहाँ खाद्यान्न की कमी या महंगाई के कारण लोग भोजन खरीदने में असमर्थ होते हैं।
महत्व:
- निर्गम कीमत का निर्धारण खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है, ताकि सभी वर्गों के लोगों को उचित मूल्य पर खाद्य सामग्री मिल सके।
- यह किसानों को भी सहायता प्रदान करता है, क्योंकि सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के माध्यम से उन्हें उनकी उपज का उचित मूल्य मिलता है।
निष्कर्ष: निर्गम कीमत का उद्देश्य समाज के गरीब वर्गों को खाद्य सुरक्षा प्रदान करना है, जिससे वे अपने जीवन यापन के लिए आवश्यक खाद्य सामग्री आसानी से प्राप्त कर सकें। यह प्रणाली न केवल खाद्य असुरक्षा को कम करने में मदद करती है, बल्कि सामाजिक न्याय को भी बढ़ावा देती है।
(घ) उचित दर की दुकान (Fair Price Shops)
उचित दर की दुकानें, जिन्हें राशन की दुकानें भी कहा जाता है, भारत में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक महत्वपूर्ण प्रणाली का हिस्सा हैं। ये दुकानें सरकार द्वारा नियंत्रित होती हैं और गरीब वर्ग के लोगों को आवश्यक खाद्य वस्तुएं जैसे अनाज, चीनी, और तेल कम कीमत पर उपलब्ध कराती हैं।
मुख्य विशेषताएँ:
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS): उचित दर की दुकानें सार्वजनिक वितरण प्रणाली का हिस्सा हैं, जिसका उद्देश्य गरीबों को सस्ती दरों पर खाद्य सामग्री उपलब्ध कराना है।
- वितरण का तंत्र: ये दुकानें भारतीय खाद्य निगम (FCI) द्वारा खरीदे गए अनाज को वितरित करती हैं। सरकार द्वारा निर्धारित मूल्य पर ये खाद्य सामग्री उपभोक्ताओं को उपलब्ध कराई जाती है, जो बाजार मूल्य से काफी कम होती है।
- सामाजिक सुरक्षा: उचित दर की दुकानें उन लोगों के लिए एक सुरक्षा जाल का काम करती हैं, जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं। यह सुनिश्चित करती हैं कि उन्हें आवश्यक खाद्य सामग्री समय पर और उचित मूल्य पर मिल सके।
- समस्याएँ: हालांकि उचित दर की दुकानें खाद्य सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, लेकिन इनके संचालन में कई समस्याएँ भी हैं। जैसे कि, कुछ दुकानदार अनाज को खुले बाजार में बेचने के लिए भटकते हैं, जिससे गरीबों को सही मात्रा में अनाज नहीं मिल पाता। इसके अलावा, गुणवत्ता की कमी और भ्रष्टाचार भी एक बड़ी समस्या है।
उदाहरण: भारत में लगभग 5.5 लाख उचित दर की दुकानें हैं, जो विभिन्न क्षेत्रों में फैली हुई हैं। ये दुकानें ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में उपलब्ध हैं, जिससे खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित किया जा सके।
निष्कर्ष: उचित दर की दुकानें खाद्य सुरक्षा की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हैं, लेकिन इनकी प्रभावशीलता को बढ़ाने के लिए सुधार की आवश्यकता है। सरकार को इन दुकानों के संचालन में पारदर्शिता और गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए।
11. राशन की दुकानों के संचालन में क्या समस्याएँ हैं?
उत्तर: समस्याएँ राशन की दुकानों के संचालन में:
- लेखा-जोखा रखने की आवश्यकता: राशन की दुकानों को हर लेन-देन का सही-सही लेखा-जोखा रखना पड़ता है। यह प्रक्रिया समय-समय पर जटिल हो सकती है, जिससे दुकानदारों को अतिरिक्त मेहनत करनी पड़ती है।
- उपभोक्ता की शिकायतें: यदि उपभोक्ता की कोई शिकायत होती है, तो उसे सही तरीके से निपटाना आवश्यक होता है। शिकायत की पुष्टि होने पर दुकानदार का लाइसेंस रद्द भी हो सकता है, जिससे दुकानदार को आर्थिक नुकसान हो सकता है।
- अनाज की गुणवत्ता: कई बार राशन की दुकानों पर उपलब्ध अनाज की गुणवत्ता खराब होती है। इससे उपभोक्ताओं में असंतोष बढ़ता है और वे उचित दर की दुकानों पर जाने से कतराते हैं।
- भ्रष्टाचार: कुछ राशन की दुकानों पर भ्रष्टाचार की समस्या भी होती है, जहां दुकानदार अनाज को खुले बाजार में बेचने का प्रयास करते हैं, जिससे गरीबों को लाभ नहीं मिल पाता।
- सामाजिक दबाव: दुकानदारों को कभी-कभी सामाजिक दबाव का सामना करना पड़ता है, जिससे वे अनावश्यक रूप से कुछ उपभोक्ताओं को प्राथमिकता देने के लिए मजबूर हो सकते हैं।
- प्रशासनिक बाधाएँ: सरकारी नियमों और नीतियों में बदलाव के कारण दुकानदारों को समय-समय पर नई प्रक्रियाओं का पालन करना पड़ता है, जो उनके लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
इन समस्याओं का समाधान करने के लिए, सरकार को राशन की दुकानों के संचालन में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने की आवश्यकता है। इसके अलावा, उपभोक्ताओं को भी अपनी शिकायतें दर्ज कराने के लिए उचित प्लेटफार्म उपलब्ध कराए जाने चाहिए।
सारांश: राशन की दुकानों का संचालन कई समस्याओं का सामना करता है, जिनमें लेखा-जोखा, गुणवत्ता, भ्रष्टाचार, और सामाजिक दबाव शामिल हैं। इन समस्याओं को हल करने के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।
12. खाद्य और संबंधित वस्तुओं को उपलब्ध कराने में सहकारी समितियों की भूमिका पर एक टिप्पणी लिखें।
उत्तर: भूमिका: खाद्य और संबंधित वस्तुओं को उपलब्ध कराने में सहकारी समितियों की भूमिका
सहकारी समितियाँ भारत में खाद्य और संबंधित वस्तुओं की उपलब्धता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। ये समितियाँ गरीब और जरूरतमंद लोगों को सस्ती दरों पर खाद्य सामग्री उपलब्ध कराने के लिए स्थापित की गई हैं। सहकारी समितियों के माध्यम से निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते हैं:
- सस्ती दरों पर खाद्य सामग्री: सहकारी समितियाँ जैसे मदर डेयरी और अमूल, उपभोक्ताओं को नियंत्रित कीमतों पर दूध, सब्जियाँ और अन्य खाद्य सामग्री उपलब्ध कराती हैं। इससे गरीब परिवारों को आवश्यक वस्तुएँ सस्ती दरों पर मिलती हैं।
- स्थानीय उत्पादन को बढ़ावा: सहकारी समितियाँ स्थानीय किसानों और उत्पादकों को जोड़कर उनके उत्पादों को सीधे उपभोक्ताओं तक पहुँचाने में मदद करती हैं। इससे किसानों को बेहतर मूल्य मिलता है और उपभोक्ताओं को ताजगी से भरी सामग्री।
- रोजगार के अवसर: सहकारी समितियाँ स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर भी प्रदान करती हैं। इससे न केवल खाद्य सुरक्षा में सुधार होता है, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी मजबूती मिलती है।
- सामाजिक सुरक्षा: सहकारी समितियाँ सामाजिक सुरक्षा का एक साधन भी हैं, जो गरीब और कमजोर वर्गों को खाद्य सुरक्षा प्रदान करती हैं। ये समितियाँ अक्सर उन क्षेत्रों में कार्य करती हैं जहाँ सरकारी योजनाएँ प्रभावी नहीं होतीं।
- सामुदायिक भागीदारी: सहकारी समितियाँ स्थानीय समुदायों की भागीदारी को बढ़ावा देती हैं। लोग अपने सामूहिक हितों के लिए एकजुट होकर काम करते हैं, जिससे सामाजिक एकता और सहयोग की भावना विकसित होती है।
उदाहरण:
- मदर डेयरी: यह दिल्ली में एक प्रमुख सहकारी है जो दूध और डेयरी उत्पादों की आपूर्ति करती है। यह उपभोक्ताओं को उचित मूल्य पर उच्च गुणवत्ता वाले उत्पाद प्रदान करती है।
- अमूल: यह एक प्रसिद्ध सहकारी है जो दूध और दूध उत्पादों के लिए जानी जाती है। अमूल ने ‘सफेद क्रांति’ में महत्वपूर्ण योगदान दिया है और यह किसानों को सीधे लाभ पहुँचाने में सफल रही है।
निष्कर्ष: सहकारी समितियाँ खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। ये न केवल खाद्य सामग्री की उपलब्धता को बढ़ाती हैं, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी सशक्त बनाती हैं।
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