Class 11 Hindi (Antra) पाठ – 17 बादल को घिरते देखा है (सारांश)

NCERT Solutions for Class 11
Hindi (Antra) Chapter-17 Badal ko ghirte dekha hai : Summary

Claas–11 काव्य खंड – 17 बादल को घिरते देखा है : सारांश

कवि

नागार्जुन

कवि ‘नागार्जुन’ की , बादल को घिरते देखा है’ कविता संकलित की गई है। इस कविता के माध्यम से कवि ने हिमालय की घाटियों , दुर्गम झीलों , दुर्गम बर्फीली घाटियों , देवदार के जंगलों के बीच दुर्लभ वनस्पतियों , जीव- जंतुओं , किन्नर-किन्नरीयो तथा वहां व्याप्त समस्त जीवन का चित्र प्रस्तुत किया है।

इस कविता में कवि ‘नागार्जुन’ ने बादलों के जो-जो रूप देखें हैं , उसका वर्णन किया है।

कवि कहते हैं कि , निर्मल और सफेद पर्वत की चोटियों पर मैंने बादल को घिरते हुए देखा है। मैंने उस बादल की सफेद ठंडी छोटी-छोटी मोतियों के सामान ओस कि बूंदों को मानसरोवर में खिले सुनहरे कमल के फूलों पर गिरते हुए देखा है।

कवि कहते है , हिमालय की चोटियों मे छोटी-बड़ी झीले हैं। उन झीलों मे नीले-काले जल में मैंने हंसों को तैरते देखा है ,जो वर्षा ऋतु के समय हवा न चलने के कारण भीषण गर्मी से परेशान होकर मैदानी क्षेत्रों से , यहां आकर कमल नाल के अंदर स्थित कड़वे और मीठे कोमल तंतु ढूंढते रहते हैं। मैंने हिमालय पर बादल को घिरते देखा है।

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कवि कहते है कि , बसंत ऋतु की सुंदर सुबह में हल्की-हल्की हवा चल रही है , नए सूरज की हल्की-हल्की सी किरणें आ रही है। वहां पर पर्वत बर्फ की परत से ढके हुए हैं। दो पर्वतो की सफेद चोटियों पर सूर्य की सुनहरी किरणों के पडने से पर्वत सोने की तरह चमक रहे है।

कवि कहते है कि , मैंने पहाड़ी इलाकों में प्रकृति के आकर्षित दृश्यों के बीच का ऐसा सुंदर भावपूर्ण दृश्य भी देखा है। मैंने पर्वतों की ऊंची चोटियों पर बादलों को घिरते हुए देखा है।

कवि कहता है ,उसने दुर्गम बर्फीले घाटियों में हजारों-सैकड़ों फुट की ऊंचाई पर स्थित बर्फीली घाटियों पर चंचल हिरणो को दौड़ते देखा है। यह चंचल और युवा हिरण अपने ही नाभि में बसी हुई कस्तूरी मादक सुगंध के पीछे दौड़-दौड़ कर भागता है। और उसे कभी ना पाकर चिड़ उठता है। वह स्वयं पर ही चिड़ उठता है। वास्तव में वह कस्तूरी मादक सुगंध उसी की नाभि से आ रही होती है। लेकिन हिरण इतना भोला-भाला है ,कि उसे पाने के लिए इधर-उधर दौड़ता रहता है। पर उसे पता ही नहीं है , कि वह सुगंध कहां से आ रही है? कवि ने यह दृश्य अपनी आंखो से देखा है। बाद में कवि कहते है , मैंने पर्वत की ऊंची चोटियों पर बादलों को घिरते हुए देखा है।

कवि निराश स्वर में कहते है , कि न जाने वह धनपति कुबेर जिसने यक्ष को निर्वासन का दंड दिया था , कहां चला गया? उसकी वैभव नगरी जिसका नाम ‘अलकापुरी’ था उसका भी कोई निशान नहीं दिखाई दे रहा है। कालिदास ने अपने प्रसिद्ध विरह काव्य मेघदूत में जिस आकाश गंगा का वर्णन किया है , वह भी न जाने कहां बहती है। उस अकाश गंगा का जल भी कहीं दिखाई नहीं देता मेघदूत के पात्रों एवं स्थलों को प्रयास करने के बाद भी कवि नहीं खोज पाता है। जो मैघ का दूत बनकर अलकापुरी भेजा था , वह मेघदूत भी ना जाने कहां गया? संभवतः यह इसी पर्वत पर बरस पड़ा हो।

कवि कहते है बादलों ने प्रेम संदेश दिया हो या ना हो। शायद वह कालिदास की कल्पना में ही उपजा था। लेकिन मैंने इस पर्वत प्रदेश में भीषण सर्दी में गगनचुंबी कैलाश पर्वत पर मेघ खंडों को तूफानी हवाओं से टकराते हुए देखा है। मैंने बादल को घिरते देखा है।

कवि कहते हैं , सौ से भी अधिक झरनों के जल को कल-कल बहते मैंने हिमालय पर्वत पर देखा है। जहां देवदार के पेड़ों के जंगल हैं। मैंने किन्नरों की कुटिया में लाल रंग के और सफेद रंग के भोजपत्र ढके हुए देखे हैं। नर किन्नरों की सुंदर कुटिया के भीतर मैंने देखा है। उन्होंने गले में नीले रंग के फूलों की माला पहनी हुई है। और कानों में भी फूल लटकाए हुए हैं। उनकी कुटिया सजी हुई है।

कवि कहते है , कि उनके गले इतने सुघड़ हैं , कि उनके गले से शंख जैसी सुंदर आवाज आती है। और जब वे संगीत की लय छोड़ते हैं , तो उनकी आवाज शंख नाथ की तरह सुंदर ध्वनि उत्पन्न होती है।

कवि कहते हैं कि मैंने उनके कुटिया के भीतर देखा है , उनके सामने पान के पात्र और मदिरा के पात्र रखे हुए हैं। और वे बैठे हुए हैं। आगे कवि कहते हैं कि उनकी कुटिया के भीतर चांदी के मणियों से सजे हुए पात्र हैं जो अंगूर की मदिरा से भरे हुए हैं। और वे दोनों बैठे हुए हैं। उनके आसन नरम व मुलायम है। आसन हिरण की चमड़ी से बने हुए हैं , उन पर वह पालती मारे बैठे हुए हैं। उनकी आंखें मदिरा के नशे से लाल हो गई है। और मैंने किन्नर-किन्नरीयो के मुलायम उंगलियों से उन्हें बांसुरी बजाते हुए देखा है। मैंने बादलों को घिरते देखा है।

शब्दार्थ :-

1. अमल- निर्मल
2. धवल- सफेद
3. गिरी- पर्वत
4. शिखर- चोटी
5. तुहिन कण- ओस की बूंद
6. स्वर्णिम- सुनहरा
7. तुंग- ऊंचा
8. श्यामल- सावला , काला
9. सलिल- जल
10. पावस- वर्षा काल
11. ऊमस- हवा न चलने से होने वाली भीषण गर्मी
12. तिक्त- मधुर- कड़वे और मीठे
13. विसतंतु- कमल नाल के भीतर स्थित कोमल रेशे या तंतु
14. तिरते- तैरते
15. सुप्रभात- सुंदर सवेरा
16. अनिल- हवा
17. बालारूण- नवोदित सूर्य
18. मृदुल- कोमल
19. स्वर्णाभ- सोने की आभा वाला , सुनहरा
20. विरहित- वियुक्त , बिछड़े हुए
21. चिर अभिशापित- सदा से ही शापग्रस्त अभागो
22. क्रंदन- चीख , विलाप
23. शैवाल- काई जाति की एक घास
24. प्रणय कलह- प्यार भरी छेड़-छाड़
25. दुर्गम- जहां पहुंचना कठिन हो , विषम
26. सहस्त्र- हजार
27. अलख- जिसे देखा न जा सके , अगोचर
28. उन्मादक परिमल- नशीली सुगंध
29. धावित- दौड़ता हुआ
30. व्योम-प्रवाही- आकाश में घूमने वाला
31. मेघदूत- कालिदास का प्रसिद्ध काव्य-खंड
32. कल्पित- कल्पना द्वारा रचित
33. नभ-चुंबी- आकाश को चुमने वाली
34. महामेघ- विशाल बादल
35. झंझानील- प्रचंड वायु आंधी-तूफान
36. शत-शत- सैकड़ों
37. निर्झर- झरने
38. मुखरित- व्यक्त
39. धवन- स्वच्छ
40. कल- ध्वनि
41. कानन- जंगल
42. शोणित- लाल
43. कुवलय- नीलकमल
44. शतदल- कमल
45. कुंतल- बालों की लट

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