Class 11 Hindi (Antral) पाठ-3  आवारा मसीहा : सारांश

NCERT Solutions for Class 11 hindi (Antral) chapter-3 Aavaran Mashiha : Summary

Class-11 पाठ- 3 आवारा मसीहा : सारांश

लेखक

– विष्णु प्रभाकर

पाठ ‘आवारा मसीहा’के लेखक ‘विष्णु प्रभाकर’जी है। इस पाठ में ‘विष्णु प्रभाकर’जी ने एक बहुत बड़े साहित्यकार ‘शरतचंद्र’जी के जीवन की कहानी बताई है। कि किस तरह से वे अपने ननिहाल में पले पढ़े और फिर वे कुछ समय बाद अपने माता-पिता के साथ घर वापस चले गए। इस जीवनी के लिए विष्णु प्रभाकर जी को ‘साहित्य अकादमी’पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

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कहानी इस प्रकार है कि किसी कारण स्कूल की आधी छुट्टी हो गई थी। शरत ने अपने मामा ‘सुरेंद्र’ से कहा कि चलो पुराने बाग में घूम आए। उस समय बहुत गर्मी पड़ रही थी। शरत का मन बहुत परेशान था कि अब सुरेंद्र मामा यहां से चले जाएंगे। शरत के मामा आयु में छोटे थे इसलिए सुरेंद्र मामा और शरतचंद्र में बहुत ज्यादा मित्रता थी। शरत ने कहा कि वह यहां आता जाता रहेगा , क्योंकि उन्हें भागलपुर आना बहुत अच्छा लगता था। “घाट के टूटे स्पूत से गंगा में कूदने में कितना मजा आता है ! उस पार वह जो झाऊ वन है , उसे क्या भूल सकूंगा ! वह मुझे पुकारेगा और मैं चला आऊंगा ! शरत ने पेड़ पर चढ़ना बहुत जरूरी बताया और फिर वो पेड़ पर चढ़ गया। और फिर शरद ने बताया कि अगर कभी शाम के समय काला अंधेरा फैला हो और चारों ओर से हिंसक जानवरों की आवाजें सुनाई देने लगे और आपको पेड़ पर चढ़ना ना आए तो बहुत मुश्किल आ जाएगी।

शरत ने वहां पेड़ पर चढ़ना सीख लिया था। और अब शरत को अपने नाना के घर रहते हुए तीन साल हो गए थे ,वे अपनी मां के साथ यहां आता रहता था। जब पहली बार उसकी मां उसे यहां लेकर आई तब नाना-नानी ने उस पर बहुत सारा धन लुटाया और बहुत सारे गहने दिए ‚ क्योंकि वह पहला लड़का था। उस परिवार में उसके पिता का नाम ‘मोतीलाल ’था। वे कोई नौकरी नहीं करते थे ,वह जहां पर भी नौकरी करने जाते वहां अफसर से लड़ाई ,झगड़ा करके नौकरी छोड़ देते थे। उसके नाना बहुत बड़े अधिकारी थे और एक स्कूल के मंत्री भी थे। शरतचंद्र के पिता को बचपन से ही बहुत सारे नाटक ,उपन्यास ,कहानी आदि लिखने का शौक था। उनकी चित्रकला में भी बहुत रूचि थी।

उनकी लेख भी बहुत सुंदर थी। वे अपने लेख में मोती जैसे सुंदर-सुंदर अक्षर बनाते थे। वे हमेशा कोई ना कोई रचना ,कहानी ,उपन्यास ,कविता लिखते रहते। इसलिए उनका पढ़ाई के प्रति जो लगाव था ,वह बचपन से ही दिख रहा था। वे कभी कोई रचना पूरी नहीं कर सके। परिवार का भरण-पोषण उनके लिए संभव हो गया। यह सब कुछ देख कर शरत की मां ‘भुवनमोहिनी’ने अपने पति से लड़ाई-झगड़ा करके अपने पिता ‘केदारनाथ’ से प्रार्थना की और एक दिन सबको लेकर भागलपुर चली गई। और मोतीलाल वहीं पर फिर से घर जमाई बनकर रहने लगे।

भागलपुर आ जाने के बाद शरत को स्कूल जाना भी जरूरी था। इसीलिए उसे दुर्गाचरण एम.ई स्कूल की छात्रवृत्ति क्लास में भर्ती कर दिया गया। उसके नाना स्कूल के मंत्री थे। यही पर आकर उन्होंने बहुत सारी किताबें पढ़ी जैसे ‘बोधोदय’ , ‘सीता-बनवास’, ‘चारु-पाठ’ , ‘सद्भाव-सद्गुरु’और प्रकांड-व्याकरण पढ़ना शुरू किया। जब वह पहली बार स्कूल गए तब वह क्लास में सभी बच्चों से बहुत पीछे थे ,लेकिन उन्होंने बहुत मेहनत की और देखते ही देखते उन्होंने बहुत सारे बच्चों को पीछे छोड़ दिया और उनकी गिनती अच्छे बच्चों में कि जाने लगी।

उनके नाना के कई भाई थे और सभी भाई  साथ में ही रहते थे। इसीलिए परिवार में मामाओं और मौसियों की संख्या बहुत ज्यादा थी। उम्र में छोटे नाना ‘अघोरनाथ’ का बेटा ‘मणींद्र ’ , ‘शरतचंद्र’ के साथ ही पढ़ते थे। उन दोनों को साथ में पढ़ाने के लिए नाना जी ने अक्षय पंडित को नियुक्त कर दिया। वह बीच-बीच में सिंह-गर्जना करते रहते थे। नाना जी स्कूल के मंत्री के साथ-साथ समाज के नेता भी थे। एक दिन पंडित जी को बुखार आया तो नाना लालटेन लेकर उन्हें को देखने चले गए। नाना के जाते ही कक्षा के सभी बच्चे खुशी से अंग्रेजी कविता गाने लगे। एक बच्चे ने आखिरी पंक्ति का अनुवाद भी कर दिया। एक दिन एक चमगादड़ बच्चों के सिर पर मँडराने लगा। शरत और मणि दोनों के हाथों में खुजली होने लगी ,चमगादड़ को मारने के लिए। फिर वह दोनों लाठी लेकर चमगादड़ को मारने निकले तभी उनकी लाठी से जलता हुआ दिया नीचे गिर गया। फिर जब नाना जी ने पूछा कि यह किससे हुआ तो सभी ने गलती शरद की बताई। शरतचंद्र बचपन से ही बहुत शरारती थे। वह अपने सहपाठी और मित्रों के साथ मिलकर ,कभी-कभी स्कूल की घड़ी को आगे कर देते थे। एक बार उन्होंने पूरे एक घंटे आगे कर दिया। घड़ी ठीक करके चलाने का भार अक्षय पंडित पर था। शरतचंद्र जी अपने ननिहाल में अपने मामाओं के नेता बन गए थे।

अब जैसा कि आप जानते हैं छोटे बच्चों को बचपन में पशु-पक्षी पालने का ,उपवन लगाने का ,बाग-बगीचे लगाने का ,तितलियां पालने का बड़ा शौक होता है ,तो शरतचंद्र को भी इस तरह का शौक था। उन्होंने उपवन में तरह-तरह के फूल लगा रखे थे। वे सभी काम छुप-छुप कर करते थे। क्योंकि नानाजी को यह सभी काम पसंद नहीं था ,कि बच्चे पढ़ाई-लिखाई छोड़ कर ये सभी काम करें। नाना जी कहते थे कि बच्चों को सिर्फ पढ़ाई करनी चाहिए और घर के बरामदे में बच्चे चिल्ला-चिल्ला कर घूम-घूम कर पढ़ना चाहिए ताकि बच्चे जो भी पढ़ें मेरे कानों में आवाज आए और मुझे पता चले कि बच्चे क्या पढ़ रहे हैं। और कितना पढ़ रहे हैं। और घर का यह नियम था की अगर बच्चे ऐसा ना करें तो उन्हें दंड दिया जाता था। शरतचंद्र सबकी आंखों में धूल झोंकने में माहिर थे। छात्रवृत्ति की परीक्षा में उन्होंने दसवीं पास कर ली। उसके बाद उन्हें एक अंग्रेजी स्कूल में डाला गया। उन्होंने अपने ननिहाल में पतंगे उड़ाना ,लट्टू घुमाना ,गोली और गुल्ली डंडा यह सभी खेल सीखें। उन्हें सजाने-संवारने का बहुत शौक था। वह अपने पढ़ाई करने वाले कमरे को हमेशा साफ-सुथरा और सजा कर रखते थे। और वह बहुत संतुलित खाना खाते थे। उन्हें तैरने का भी बहुत शौक था। किसी ने उन्हें बताया कि तैरने से स्वस्थ रहते हैं ,तो उन्होंने तैरना शुरू किया और अपने मामा के साथ तलाब में नहाने चले गए जब घर में पता चला तो उन्हें पिटाई और डाट भी पड़ी। जब शरत की पिटाई की बारी आई तो छोटी नानी ने शरत से कहा कि तुम घर के गोदाम में छुप जाओ।

शरत को खेलने के साथ पढ़ने का भी शौक था। तो उन्होंने किसी किताब में पढ़ लिया कि सांप को कैसे वश में किया जाता है ,तो उन्होंने जड़ी-बूटी ढूंढी और सांप को पकड़ने गए सांप तो पकड़ में आया नहीं लेकिन मुंह खोल कर शरत को काटने के लिए उनके पीछे जाने लगा। तो मामा मणि ने सांप को अपनी लाठी से मार दिया।

मामा जी शरतचंद्र को करोंदे ,नीम ,और आम का पेड़ दिखाने ले जाया करते थे। इसी बीच उन्हें पढ़ने का बहुत शौक था ,उन्होंने गणित में पूरे अंक प्राप्त किए। और उन्हीं से स्कूल में छोटा सा पुस्तकालय था वही पर बैठकर उन्होंने कई प्रसिद्ध लेखकों की रचनाएं पढ डाली। शरतचंद्र जी ने अपने आसपास के वातावरण की घटनाओं को अच्छे से पहचान लिया था।

एक बार उनकी माताजी को चोट लग गई थी। और नाना जी की ऐसी स्थिति नहीं थी कि वे अकेले इतने सारे लोगों का पालन-पोषण कर सकें। तो नाना जी ने शरतचंद्र के पिता को कहा कि अब तुम भागलपुर छोड़कर देवाकदपुर जाओ और वहाँ पर कुछ काम करो। फिर मोतीलाल जी कुछ छोटी-मोटी नौकरी ढूंढने लगे लेकिन नौकरी नहीं मिली।

अब नाना जी ने शरतचंद्र के पिता जी से कहां की तुम अपने पूरे परिवार को लेकर वापस देवानंदपुर चले जाओ वहां पर शरतचंद्र की शरारतें और बढ़ गई क्योंकि वहां पर रोकने वाला कोई नहीं था ,लेकिन नाना के यहां पर तो बहुत अनुशासन था।  स्कूल जाने का कोई नामोनिशान नहीं था। फीस का कोई जुगाड़ नहीं हो रहा था। घर में बहुत कंगाली थी। इसी वजह से घर में बहुत परेशानी हो रही थी। इसी तरह शरतचंद्र अपनी कहानियां गढ़कर अपने मित्रों को सुनाने लगे शरतचंद्र जी ऐसी कहानियां बनाते और लिखते की सभी को आश्चर्य होता कि इतनी छोटी उम्र में कितनी अच्छी कहानी लिखता है ,इतना छोटा बच्चा इतना आगे बढ़ गया और तो और शरतचंद्र छिप-छिप कर सांप पकड़ना उनका जहर उतारने का मंत्र यह सब कुछ उन्होंने एक सपेरे से सीखा था ,लेकिन काले नाग को पकड़ते समय मृत्युंजय की मौत हो गई।

शरतचंद्र के पिता मोतीलाल बहुत घुमक्कड़ स्वभाव के थे। किसी कामकाज में उनकी कोई रुचि नहीं थी। शरतचंद्र जी का जन्म देवानंदपुर बंगाल के साधारण गांव में 15 सितंबर 1876 ईसवी मे हुआ। और उनका जीवन बहुत कमियों में बीता शरतचंद्र जी जब 5 साल के हुए तब उन्हें पंडित जी की पाठशाला में दाखिल करा दिया गया। वह कोई न कोई शरारत करते रहते। कभी हुक्का पी लेते तो कभी कुछ कर लेते इसके साथ ही वह पढ़ने में भी बहुत होशियार थे। और इसी बीच उन्होंने ‘देवदास’ की पारो‚ ‘बड़ी दीदी’ की माधवी और ‘श्रीकांत की राजलक्ष्मी’,लिखि जो कि धीरू के ही विकसित रूप थी। जब उन्होंने बड़े-बड़े उपन्यास लिखे तो उन में कहीं ना कहीं जिक्र किया गया है कि वह बचपन में बहुत शरारती थे। 

अब जब उनका परिवार घोर गरीबी से जूझ रहा था ,तो ऐसे में उनको बहुत ज्यादा कहानी लिखने का हुनर आ गया। जो उन्हें अपने पिता से मिला था। उनके पिता भी बहुत अच्छी कहानियां लिखा करते थे। लेकिन आधी-अधूरी हमेशा कुछ ना कुछ आधा-अधूरा लिख कर छोड़ देते थे। तब शरतचंद्र जी ने वह कहानियां बचपन से निकाल-निकाल कर ढूंढना शुरू करी जब वे देवानंदपुर पहुंचे तो ,यहां पर उन्होंने जो कहानियां लिखी है जैसे शुभदा चरित्रहीन यह सब कहानियां उन्होंने जो उनके साथ बचपन में बीती नई कहानियों की शक्ल लेकर साहित्यकार बना दिया। उनका सारा जीवन घोर दरिद्रता और अभावों में बीता इसी दरिद्रता के भयानक चित्र शरतचंद्र जी ने शुभदा में खींचे हैं। यातना की लीन में उसकी साहित्य साधना का बीजारोपण हुआ था इसीलिए शरतचंद्र जी अपने गांव के ऋण से कभी भी मुक्त ना हो सके।

शब्दार्थ

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1. नवासा- बेटी का बेटा
2. निस्तब्धता- बिल्कुल शांत
3. सहसा- अचानक
4. भागलपुर- बिहार प्रदेश का एक जिला
5. घाट- नदी का किनारा
6. स्तूप- खंभा
7. दीर्घ- बड़ा
8. निःश्वाल- सांस निकालना
9. संध्या- शाम
10. हिंसक- खतरनाक और हिंसा करने वाला
11. विद्याध्ययन- विद्या का अध्ययन
12. अग्रणी- आगे रहना
13. अक्षम्य- क्षमा न करने योग्य 
14. संधि-विच्छेद- शब्द के वर्णों को भिन्न करना
15. अस्तबल- घोड़ों का घर
16. अक्सर- आमतौर पर
17. निष्णात- सबसे आगे 
18. निषिद्ध- अलोकप्रिय
19. कलमुँहा- पाजी (गाली)
20. उत्फुल्ल- खुश होकर
21. कष्टसाध्य- रोग निवारक
22. क्षुब्ध- परेशान ,अनुन्य 
23. विनय- प्रार्थना
24. आच्छन्न- ढका हुआ
25. स्निग्ध- हल्के
26. उपासना- पूजा
27. प्रतिध्वनी- अपनी ही आवाज गूँजना 
28. पारितोषिक- वेतन
29. व्यवधान- बाधा
30. वर्जित- आज्ञा नहीं मिलना
31. द्वंद युद्ध- भिड़ना 
32. स्वाधीनचेता- स्वाधीनता के लिए सचेत
33. क्रोध- गुस्सा
34. दारिद्रय- गरीबी में
35. कैशोर्य- बचपन 
36. कृपण- कृपा
37. अक्सर- आमतौर पर
38. शागिर्द- शिष्य
39 पोखर- तालाब
40. आफत- मुसीबत
41. व्याघात- परेशानी 
42. श्यामता- कालापन
43. अभिज्ञता- जिसकी जानकारी न हो
44. विलासी- जो वैभवपूर्ण तरीके से जीता हो
45. शैयागत- जो हमेशा पड़ा रहता है
46. दारिद्रय- निर्धनता

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