Class 11 Hindi (Antra) term-II पाठ : 6 खानाबदोश (सारांश)

NCERT Solutions for Class 11 Hindi (Antra) term-II Summary : Chapter – 6 khanabadosh

लेखक

– ओमप्रकाश वाल्मीकि

इस कहानी में ‘ओमप्रकाश वाल्मीकि’ जी बताते हैं कि ‚ मेहनत की मजदूरी करके किसी तरह गुजर-बसर कर रहे मजदूर लोगों के शोषण , यातना तथा समाज की जातिवादी मानसिकता को नजरअंदाज करते हुए। मजदूर वर्ग मेहनत करके इज्जत से जीना चाहते हैं पर ऊंची जाति और अमीर लोग ऐसा होने नहीं देते।

इस कहानी के दो पात्र ‘सुकिया’ और उसकी पत्नी ‘मानो’ कमाने खाने की इच्छा से गांव-देहात छोड़कर शहर आए थे। वे असगर ठेकेदार के भट्टे पर ईंट पाथने का काम करते थे। भट्टे पर मोरी का काम सबसे खतरनाक था ईटों को पकाने के लिए कोयला, बुरादा, लकड़ी और गन्ने की बाली को मोरियो के अंदर डालना होता था। छोटी सी गलती की वजह से मौत भी हो सकती थी। अगर थोड़ा सा भी ध्यान भटक जाए तो मौत का कारण बन सकता था। वहां पर भट्टे के मजदूरों को दडबेनुमा छोटी-छोटी झोपड़ियों में रहना पड़ता था। शाम के समय जब सभी मजदूर थक जाते थे तो वह अपनी-अपनी झोपड़ियों मे चले जाते थे। वहां का वातावरण जंगली था इसीलिए वहां पर सांप और बिच्छू का डर सभी मजदूरों को लगा रहता था। और वहां पर जंगल का सन्नाटा छा जाता था। सुकिया की पत्नी मानो भट्टे के वातावरण से तालमेल नहीं बिठा पा रही थी इसलिए खाना बनाते समय चूल्हे से आती की चिट-पिट की आवाजों मे उसे अपने मन की बुरी चिंताओं और आकांक्षाओं की आवाजें सुनाई देती थी। मानो के मन में शारीरिक शोषण का डर, बात ना मानने के प्रतिकूल व्यवहार की घबराहट थी।

एक दिन भट्टे का मालिक मुख्तार सिंह कहीं बाहर चला गया तो उसका बेटा सूबे सिंह भट्टे पर काम संभालने के लिए आने लगा। सूबेसिंह के भट्टे पर आने से भट्टे का माहौल बदल गया। ठेकेदार असगर उसे डरा-डरा रहने लगा। तीन महीने पहले ही महेश और उसकी पत्नी किसनी भी भट्टे पर मजदूरी करने आए थे। अभी छः महीने पहले ही उनकी शादी हुई थी। एक दिन सूबेसिंह की नजर सांवले रंग की भरे-पूरे शरीर वाली किसनी पर पड़ गई। उसने उसे दफ्तर की सेवा टहल में लगा दिया। तीसरे दिन सुबह जब मजदूरों ने किसनी को हैंडपंप पर साबुन से नहाते देखा तो उनकी आंखों में शंकाओं के बादल घिर आए। क्योंकि भट्टे पर साबुन किसी के पास नहीं था। सूबे सिंह किसनी को शहर भी घुमाने ले जाने लगा। किसनी बहुत खुश थी। वह सूबेसिंह के साथ अधिक समय व्यतीत करने लगी। उसके रंग-ढंग में बदलाव आ गया था। सूबेसिंह के चपरासी ने महेश को शराब की लत डाल दी थी। वह शराब पीकर झोपड़ी में ही पड़ा रहता और उसकी पत्नी किसनी सूबेसिंह के साथ शहर भी घूम आती थी। यह सब कुछ देखकर मजदूरों में फुसफुसाहट शुरू हो गई थी।

मानों और सुकिया खुश थे क्योंकि भट्टे पर काम करते हुए उन्होंने कुछ पैसे बचाए थे। खुद के हाथ की पथी ईटों को लाल रंग में देखते-देखते मानों के मन में एक ख्याल आया कि काश! ऐसी ही पकी की ईटों से उनका भी अपना मकान होता। वह अपने पति सुकिया से इस बारे में पूछने लगी तो उसने कहा कि घर बनाने में बहुत पैसा लगता है। दोनों ने फैसला किया कि वे दोनों मिलकर जी-तोड़ मेहनत करेंगे और अपना घर बनाएंगे। एक दिन किसनी के बीमार होने पर सूबेसिंह ने ठेकेदार असगर के द्वारा मानों को अपने दफ्तर में बुलवाया। बुलावे की खबर सुनते ही मानो और सुकिया घबरा गए। वे समझ गए कि मछली को फँसाने के लिए जाल फेंका जा रहा है। क्योंकि सूबेसिंह की नियत के बारे मे सब जानते थे। गुस्सा और आक्रोश से सुकिया की नसें खींचने लगी। मानों इज्जत की जिंदगी जीना चाहती थी। वह किसनी कि तरह बनाना नहीं चाहती थी। उनकी घबराहट देखकर जसदेव मानों के स्थान पर स्वयं सूबेसिंह से मिलने चला गया। सूबेसिंह ने जसदेव को बुरा-भला , गलत बाते बोली और मार-मार कर अधमरा कर दिया। फिर सूबेसिंह जीप में बैठकर शहर चला गया। सुकिया और मानों , जसदेव को अपनी झोपड़ी में ले आए और उसकी चोटों पर हल्दी लगा दी। पूरा दिन अदृश्य भय और दहशत में बीत गया। जसदेव के इस अपनेपन के कारण , मानों उसके लिए रोटी बनाकर ले गई , लेकिन जसदेव के ब्राह्मण होने के कारण उसने मानो की बनाई रोटी नहीं खाई। असगर ठेकेदार जसदेव से कहते हैं कि तुम सुखिया और मानो के चक्कर में मत पढ़ो। और इसी वजह से जसदेव का व्यवहार सुकिया और मानो के प्रति बदलता जा रहा था। जसदेव की पिटाई के बाद भट्टे पर काम करने वाले मजदूरों में डर फैल गया।

सूबेसिंह की हिदायत पर असगर ठेकेदार सुकिया और मानों को तरह-तरह से परेशान करने लगा। उसने सुकिया से ईट पाथने का ढांचा लेकर जसदेव को दे दिया और सुकिया को भट्टे में आग जलाने का खतरनाक काम दे दिया। मानों ने अपनी बनाई हुई ईटों को दीवार की शक्ल में लगा दिया। अगले दिन जब वह अपने काम की जगह पर पहुंची तो उसने देखा कि उसकी सारी ईंटे टूटी-फूटी पड़ी थी। जैसे कि किसी ने सभी ईटों को बेदर्दी से रौंध डाला हो। वह दहाड़े मारकर रोने लगी। मानों की आवाज सुनकर सुकिया वहां आया और उसने मानों के आंखों में बहते तेज आंसू देखें और उसकी भी हिम्मत टूट गई। और फिर ईंटों की ऐसी हालत देखकर हक्का-बक्का हो गया। असगर ठेकेदार ने टूटी-फूटी ईटों की मजदूरी देने से साफ इनकार कर दिया। सुकिया सारी बात समझ गया और उसने मानों का हाथ पकड़ कर बोला कि ‘ये लोग हमारा घर नहीं बनने देंगे’। वे लोग भुट्टे को छोड़कर खानाबदोश की तरह किसी अनजान स्थान की ओर चल पड़े। मानों ने आखिरी बार जसदेव की ओर देखा, इस यकीन से जैसे वह भी उनका साथ देगा। लेकिन उसे चुप देखकर उसका विश्वास टूट गया। वह भारी मन से सुकिया के पीछे-पीछे चल पड़ी।

शब्दार्थ:-

  • खानाबदोश- जिसका ठौर ठिकाना ना हो ,यायावर
  • पाथना- साँचे की सहायता से या हाथों से थोप-पीटकर ईट या उपला तैयार करना
  • तरतीब- क्रम , सिलसिला
  • मुआयना- निरीक्षण
  • हफ्ता- सप्ताह
  • तकलीफ- कष्ट
  • प्रतिध्वनी- गूँज , ध्वनि के उपरांत सुनाई पड़ने वाला तदनुरूप शब्द
  • औकात- सामर्थ्य , हैसियत
  • दडबा- मुर्गी को रखने के लिए बनाया गया
  • तसल्ली- ढाॅढस
  • गैरहाजिरी- अनुपस्थिति
  • अर्दली- चपरासी
  • जिस्म- शरीर
  • इंतहा- अंतिम सीमा
  • अंटी- गाँठ
  • स्याहपन- कालापन
  • जेहन- मन
  • शिद्दत- कठिनाई
  • पुख्ता- पक्का
  • अंजाम- परिणाम
  • वजूद- अस्तित्व
  • कायरता- विवशता
  • खसम- पति
  • इंतजाम- व्यवस्था
  • सूत्र- धागा
  • दहशत- डर
  • जाहिर- प्रकट
  • बामन- ब्राह्मण
  • देणे- देने
  • थारी- तुम्हारी
  • म्हारे- हमारे
  • रोट्टी- रोटी
  • फासला- दूरी
  • रखणें- रखने
  • बणा- बना
  • परयो- पर
  • लट्ठ- लाठी
  • चलणे- चलने
  • सिध्ये- सीधे
  • कू- को
  • सहर- शहर
  • बणाने- बनाने
  • इत्ते- इतने
  • अपणा- अपना
  • पावेगा- पाएगा
  • जाणा- जाना
  • बावली- पगली
  • जिनावर- जानवर

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