स्वच्छता पर निबंध।

Easy SA on Swachhata in Hindi

हमारे देश में स्वच्छ भारत अभियान गत कई वर्षों से चलाया हुआ है। भारत में सर्वत्र गंदगी देखने को मिलती थी, अब उन्हें साफ किया जा रहा है। मोदी जी ने अनेक प्रमुख व्यक्तियों को स्वच्छ भारत अभियान को क्रियान्वित करने की जिम्मेदारी दी है। अब इस दिशा में तेज़ी से काम हो रहा है। स्वच्छता कार्यक्रम के अंतर्गत खुले में शौच करने पर रोक लगाई जा रही है। अधिकांश गांवो में शौचालय बनाए गए हैं, शेष में बनाए जा रहे हैं। स्कूलों में भी शौचालयों की व्यवस्था अंतिम चरण में है।

इस स्वच्छता का संबंध हमारे स्वास्थ्य से है। यदि हम स्वच्छता के नियमों का पालन करेंगे तो हमारा जीवन स्वस्थ बनेगा। जहां गंदगी होगी, वहां बीमारी होगी। हमारी एक गंदी आदत है कि हम अपना घर तो साफ रखते हैं, पर घर के बाहर गली व सड़कों पर गंदगी फैला देते हैं। यह आदत बहुत बुरी है। हमें अपने आस-पास के वातावरण को भी स्वच्छ रखना होगा। भारत गांवों का देश है। वहां गंदगी अधिक है। इसे दूर करना है। लोगों में जनचेतना जगानी होगी, तभी स्वच्छ भारत स्वस्थ भारत का संकल्प पूरा हो सकेगा। हमारे दृढ़ निश्चय से यह अवश्य पूरा होकर रहेगा। अधिकांश लोगों को भी यह बात भली प्रकार समझ आ गई है कि अपने आस-पास के वातावरण को स्वच्छ रखना हमारे ही हित में है।

मानव ने जब प्रकृति माता की गोद में आंखें खोली तो उसने अपने चारों ओर उज्जवल प्रकाश, निर्मल जल और स्वच्छ वायु का वरदान पाया। वन प्रदेशों की मनोहर हरियाली में उसने जीवन के मधुरतम सपने देखें। उसका पेड़–पौधों से, फल, फूलों से, चहकते पक्षियों से, प्रभाव और संध्याबेला से नित्य का संबंध था। प्रकृति के आंगन में खेलते हुए उसने पाया पुष्ट, निरोग शरीर और उत्साह-उल्लास से लबालब तनाव हीन मानस। किंतु धीरे-धीरे उसके मन में प्रकृति पर आए शासन करने की लालसा जागी। उसने प्रकृति को मां के स्थान से हटाकर दासी के स्थान पर धकेलना चाहा। इसको नाम दिया गया “वैज्ञानिक–प्रगति”। 

इसी वैज्ञानिक प्रगति के कारण आज सृष्टि का कोई पदार्थ, कोई कोना प्रदूषण के प्रहार से नहीं बच पाया है। प्रदूषण मानवता के अस्तित्व पर एक नंगी तलवार की भाती लटक रहा है।

जल मानव-जीवन के लिए परम आवश्यक पदार्थ है। जल के परंपरागत स्त्रोत हैं– कुएं, तालाब, नदी तथा वर्षा का जल। प्रदूषण ने इन सभी स्त्रोतों को दूषित कर दिया है। औद्योगिक प्रगति के साथ-साथ हानिकारक कचरा और रसायन बड़ी बेदर्दी से इन जल स्रोतों में मिल रहे हैं।

वायु भी जल जितना ही आवश्यक पदार्थ है। श्वास- प्रशवास के साथ वायु निरंतर शरीर में जाती है। आजसू दवाइयों का मिलना भी कठिन हो गया है। वाहनों, कारखानो और निकलते हुए औद्योगिक कचरे ने वायु में भी जहर भर दिया है।

प्रदूषित जल और वायु के बीच पनपने वाली वनस्पति या उसका सेवन करने वाले पशु-पक्षी भी आज दूषित हो रहे हैं। चाहे शाकाहारी हो या मांसाहारी कोई भोजन के प्रदूषण से नहीं बच सकता।

आज मनुष्य को ध्वनि के प्रदूषण को भी भोगना पड़ रहा है। कर्णकटू और ककर्ष ध्वनि मनुष्य के मानसिक संतुलन को बिगाड़ती है और उसकी कार्य क्षमता को भी कुप्रभावित करती है। वैज्ञानिक और औद्योगिक प्रगति की कृपा के फलस्वरूप आज मनुष्य ककर्ष , असहनीय और श्रवणशक्ति को ध्वनियों के समुंद्र में रहने को मजबूर है। आकाश में वायुयानो की कानफोड़ ध्वनि, धरती पर वाहनों, यंत्र और संगीत का मुफ्त दान करने वाले ध्वनि विस्तारको का शोर आदि सब मिलकर मनुष्य को बहरा बना देने पर तुले हुए हैं।

वाहनों का विसर्जन, चिमनीयो का धुआं, रसायन– शालाओं की विषैली गैसें मनुष्यों की सांसों में जहर घोल रही है। प्रगति और समृद्धि के नाम पर जहरीला व्यापार दिन-प्रतिदिन दुगुना बढ़ता जा रहा है। सभी प्रकार के प्रदूषण हमारी औद्योगिक, वैज्ञानिक और जीवन स्तर की प्रगति से जुड़ गए हैं। हमारी हालत सांप-छछूंदर जैसी हो रही है। प्रदूषण ऐसा रोग नहीं है कि जिसका कोई उपचार ही ना हो। इसका पूर्ण रूप से उन्मूलन भी न हो सके तो इसे हानिरहित सीमा तक नियंत्रित किया जा सकता है। इसके लिए कुछ कठोर, अप्रिय और असुविधाजनक उपाय भी अपनाने पड़ेंगे।

प्रदूषण फैलाने वाले सभी उद्योगों को बस्तियों से सुरक्षित दूरी पर ही स्थापित और स्थानांतरित किया जाना चाहिए।

उद्योगों से निकलने वाले कचरे और दूषित जल को निष्क्रिय करने के उपरांत ही विसर्जित करने के कठोर आदेश होने चाहिए।

ध्वनि प्रदूषण से मुक्ति भी तभी मिलेगी जब की वाहनों का अंधाधुंध प्रयोग रोका जाए।

हवाई अड्डे बस्तियों से दूर बने और वायु मार्ग भी बस्तियों के ठीक ऊपर से न गुजरे।

रेडियो, टेप तथा लाउडस्पीकरो को मंद ध्वनि से बजाया जाए।

प्रदूषण की समस्या मनुष्य का अदृश्य शत्रु है। धीरे -धीरे यह मानव जीवन को निगलने के लिए बड़ती जा रही है। यदि इस पर समय रहते नियंत्रण नहीं किया गया तो आदमी शुद्ध जल, वायु, भोजन और शांत वातावरण के लिए तरस जाएगा। प्रशासन और जनता दोनों प्रयासो से ही प्रदूषण से मुक्ति मिल सकती है। गंगा सफाई अभियान प्रशासन का ऐसा ही प्रयास था, किंतु ये आयोजन सिर्फ एक प्रशासकीय फैशन या तमाशा बनकर नहीं रह जाए। एक स्वच्छ और स्वास्थ्य विश्व में रहना है तो प्रदूषण से लड़ना ही होगा।

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