NCERT Solutions for Class 9 Social Science Economics Chapter 2 संसाधन के रूप में लोग प्रश्न और उत्तर

अभ्यास – प्रश्न

1. ‘संसाधन के रूप में लोग’ से आप क्या समझते हैं?

उत्तर: ‘संसाधन के रूप में लोग’ का अर्थ है किसी देश के कार्यरत लोगों को उनके मौजूदा उत्पादन कौशल और क्षमताओं के संदर्भ में देखना। इसे मानव संसाधन कहा जाता है, जो अर्थव्यवस्था के लिए एक संपत्ति के रूप में कार्य करता है। जब जनसंख्या में शिक्षा, प्रशिक्षण और स्वास्थ्य में निवेश किया जाता है, तो यह मानव पूंजी में परिवर्तित हो जाती है।

उदाहरण के लिए, एक देश में यदि लोग शिक्षित और स्वस्थ हैं, तो वे अधिक उत्पादकता के साथ काम कर सकते हैं, जिससे देश की आर्थिक वृद्धि में योगदान होता है। इसके विपरीत, यदि लोग अशिक्षित या अस्वस्थ हैं, तो वे अपनी पूरी क्षमता का उपयोग नहीं कर पाएंगे, जिससे अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

इसलिए, ‘संसाधन के रूप में लोग’ का विचार यह दर्शाता है कि मानव संसाधन केवल जनसंख्या नहीं है, बल्कि यह एक महत्वपूर्ण आर्थिक संपत्ति है, जिसे विकसित करने की आवश्यकता है।

2. मानव संसाधन भूमि और भौतिक पूँजी जैसे अन्य संसाधनों से कैसे भिन्न है?

उत्तर: मानव संसाधन भूमि और भौतिक पूँजी जैसे अन्य संसाधनों से कई तरीकों से भिन्न है:

  1. लचीलापन: मानव संसाधन को शिक्षा और स्वास्थ्य के माध्यम से विकसित किया जा सकता है, जबकि भूमि और भौतिक पूँजी सीमित और निश्चित होते हैं। मानव संसाधन को प्रशिक्षित किया जा सकता है और उनकी क्षमताओं को बढ़ाया जा सकता है।
  2. उपयोगिता: मानव संसाधन अन्य संसाधनों का उपयोग करने में सक्षम होते हैं। उदाहरण के लिए, एक कुशल श्रमिक मशीनों और उपकरणों का सही उपयोग कर सकता है, जबकि भूमि और भौतिक पूँजी अपने आप में उपयोगी नहीं होते।
  3. सृजनात्मकता: मानव संसाधन में सृजनात्मकता और नवाचार की क्षमता होती है। लोग नए विचारों और तकनीकों के साथ आ सकते हैं, जो अन्य संसाधनों की उत्पादकता को बढ़ा सकते हैं।
  4. समाज में योगदान: मानव संसाधन समाज के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे न केवल आर्थिक विकास में योगदान करते हैं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक विकास में भी भाग लेते हैं।
  5. संवेदनशीलता: मानव संसाधन की स्थिति और विकास सामाजिक और आर्थिक कारकों पर निर्भर करते हैं, जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, और रोजगार के अवसर। जबकि भूमि और भौतिक पूँजी की स्थिति अधिक स्थिर होती है।

इस प्रकार, मानव संसाधन को अन्य संसाधनों की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि यह विकास और प्रगति का मुख्य आधार है।

3. मानव पूँजी निर्माण में शिक्षा की क्या भूमिका है?

उत्तर: भूमिका: मानव पूँजी निर्माण में शिक्षा

शिक्षा मानव पूँजी निर्माण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह न केवल व्यक्तियों के लिए रोजगार के अवसरों को बढ़ाती है, बल्कि आर्थिक विकास में भी योगदान देती है। यहाँ कुछ प्रमुख बिंदु दिए गए हैं जो शिक्षा की भूमिका को स्पष्ट करते हैं:

  1. कौशल विकास: शिक्षा व्यक्तियों को आवश्यक कौशल और ज्ञान प्रदान करती है, जिससे वे विभिन्न क्षेत्रों में कार्य करने के लिए सक्षम होते हैं। उच्च शिक्षा प्राप्त व्यक्ति अधिक कुशलता से कार्य कर सकते हैं।
  2. आर्थिक विकास: शिक्षा से प्राप्त कौशल और ज्ञान का उपयोग करके व्यक्ति अधिक उत्पादकता के साथ काम कर सकते हैं, जिससे राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है।
  3. स्वास्थ्य और कल्याण: शिक्षित व्यक्ति आमतौर पर स्वास्थ्य के प्रति अधिक जागरूक होते हैं, जिससे उनका जीवन स्तर बेहतर होता है। यह न केवल उनके व्यक्तिगत जीवन को प्रभावित करता है, बल्कि समाज के समग्र स्वास्थ्य को भी सुधारता है।
  4. सामाजिक विकास: शिक्षा सामाजिक समरसता और समानता को बढ़ावा देती है। यह व्यक्तियों को उनके अधिकारों और जिम्मेदारियों के प्रति जागरूक करती है, जिससे वे समाज में सक्रिय भागीदार बनते हैं।
  5. रोजगार के अवसर: शिक्षा के माध्यम से व्यक्ति अच्छे नौकरी के अवसर प्राप्त कर सकते हैं। शिक्षित व्यक्ति आमतौर पर उच्च वेतन वाली नौकरियों के लिए योग्य होते हैं, जो उनके जीवन की गुणवत्ता में सुधार करती है।
  6. नवाचार और तकनीकी विकास: शिक्षा व्यक्तियों को नई तकनीकों और नवाचारों को अपनाने में मदद करती है, जो आर्थिक विकास के लिए आवश्यक हैं।

निष्कर्ष: शिक्षा मानव पूँजी निर्माण में एक केंद्रीय तत्व है। यह न केवल व्यक्तिगत विकास को बढ़ावा देती है, बल्कि समाज और अर्थव्यवस्था के विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसलिए, शिक्षा पर निवेश करना आवश्यक है ताकि हम एक सक्षम और समृद्ध समाज का निर्माण कर सकें।

4. मानव पूँजी निर्माण में स्वास्थ्य की क्या भूमिका है?

उत्तर: भूमिका: मानव पूँजी निर्माण में स्वास्थ्य

मानव पूँजी निर्माण में स्वास्थ्य की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। स्वास्थ्य का सीधा संबंध व्यक्ति की कार्यकुशलता और उत्पादकता से होता है। यहाँ कुछ मुख्य बिंदु दिए गए हैं जो स्वास्थ्य की भूमिका को स्पष्ट करते हैं:

  1. उत्पादकता में वृद्धि: स्वस्थ व्यक्ति अधिक उत्पादक होते हैं। जब व्यक्ति स्वस्थ होता है, तो वह अपनी क्षमता का पूरा उपयोग कर सकता है और कार्य में अधिक प्रभावी ढंग से योगदान दे सकता है।
  2. बीमारियों से लड़ने की क्षमता: अच्छा स्वास्थ्य व्यक्ति को बीमारियों से लड़ने की शक्ति प्रदान करता है। एक स्वस्थ व्यक्ति न केवल अपनी कार्यक्षमता को बनाए रखता है, बल्कि वह अपनी मानसिक और शारीरिक स्थिति को भी बेहतर रखता है।
  3. जीवन की गुणवत्ता में सुधार: स्वास्थ्य व्यक्ति की जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाता है। स्वस्थ व्यक्ति न केवल अपने कार्य में बेहतर प्रदर्शन करता है, बल्कि वह समाज में भी अधिक योगदान देता है।
  4. आर्थिक लाभ: स्वस्थ व्यक्ति अधिक नियमितता से काम कर सकता है, जिससे उसकी आय में वृद्धि होती है। यह न केवल व्यक्तिगत स्तर पर बल्कि समाज और अर्थव्यवस्था के लिए भी लाभकारी है।
  5. शिक्षा और कौशल विकास: स्वास्थ्य का व्यक्ति की शिक्षा और कौशल विकास पर भी प्रभाव पड़ता है। जब व्यक्ति स्वस्थ होता है, तो वह शिक्षा ग्रहण करने और कौशल विकसित करने में अधिक सक्षम होता है, जो अंततः मानव पूँजी निर्माण में सहायक होता है।

निष्कर्ष: स्वास्थ्य मानव पूँजी निर्माण का एक अनिवार्य हिस्सा है। एक स्वस्थ समाज न केवल आर्थिक विकास में योगदान देता है, बल्कि यह सामाजिक समृद्धि और कल्याण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसलिए, स्वास्थ्य पर ध्यान देना और इसे प्राथमिकता देना आवश्यक है ताकि मानव पूँजी का निर्माण और विकास किया जा सके।

5. किसी व्यक्ति के उपयोगी जीवन में स्वास्थ्य की क्या भूमिका है?

उत्तर: स्वास्थ्य किसी व्यक्ति के उपयोगी जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। एक स्वस्थ व्यक्ति अपनी पूरी क्षमता का एहसास कर सकता है और कार्य में अधिक कुशलता से काम कर सकता है। स्वास्थ्य का व्यक्ति के जीवन पर निम्नलिखित प्रभाव होता है:

  1. उत्पादकता में वृद्धि: स्वस्थ व्यक्ति अधिक मेहनत और बेहतर तरीके से काम कर सकता है, जिससे उसकी उत्पादकता बढ़ती है। उदाहरण के लिए, एक स्वस्थ श्रमिक कृषि या उद्योग में अधिक कार्य कर सकता है और बेहतर परिणाम दे सकता है।
  2. आर्थिक विकास: जब व्यक्ति स्वस्थ होता है, तो वह नियमित रूप से काम पर जा सकता है, जिससे उसकी आय में वृद्धि होती है। इससे न केवल उसके परिवार की आर्थिक स्थिति में सुधार होता है, बल्कि यह देश की अर्थव्यवस्था में भी योगदान देता है।
  3. मानसिक स्वास्थ्य: स्वास्थ्य केवल शारीरिक स्थिति तक सीमित नहीं है, बल्कि यह मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है। एक स्वस्थ व्यक्ति मानसिक रूप से भी सक्रिय रहता है, जिससे वह बेहतर निर्णय ले सकता है और समस्याओं का सामना कर सकता है।
  4. सामाजिक योगदान: स्वस्थ व्यक्ति समाज में अधिक सक्रिय रूप से भाग ले सकता है। वह सामाजिक कार्यों में शामिल हो सकता है, जैसे कि सामुदायिक सेवा, जिससे समाज का विकास होता है।
  5. जीवन की गुणवत्ता: स्वास्थ्य व्यक्ति की जीवन की गुणवत्ता को भी प्रभावित करता है। एक स्वस्थ व्यक्ति खुशहाल जीवन जीता है और उसके जीवन में संतोष होता है, जो उसके समग्र कल्याण के लिए आवश्यक है।

इस प्रकार, स्वास्थ्य व्यक्ति के जीवन में एक केंद्रीय भूमिका निभाता है, जो न केवल उसकी व्यक्तिगत सफलता को प्रभावित करता है, बल्कि समाज और अर्थव्यवस्था पर भी सकारात्मक प्रभाव डालता है।

6. प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रों में किस तरह की विभिन्न आर्थिक क्रियाएँ संचालित की जाती हैं?

उत्तर: प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रों में आर्थिक क्रियाएँ:

बिंदुप्राथमिक क्षेत्रद्वितीयक क्षेत्रतृतीयक क्षेत्र
परिभाषाप्राथमिक क्षेत्र में प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग किया जाता है।द्वितीयक क्षेत्र में कच्चे माल को तैयार उत्पादों में परिवर्तित किया जाता है।तृतीयक क्षेत्र में सेवाएँ प्रदान की जाती हैं।
उदाहरणकृषि, खनन, वन्य उत्पादों का संग्रहण।निर्माण उद्योग, खाद्य प्रसंस्करण, वस्त्र उद्योग।बैंकिंग, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएँ।
आवश्यकताप्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता।कच्चे माल की प्रोसेसिंग और उत्पादन की आवश्यकता।उपभोक्ता सेवाओं और उत्पादों की मांग।
रोजगार के अवसरकिसानों, खनिकों और मछुआरों के लिए।श्रमिकों, इंजीनियरों और तकनीशियनों के लिए।सेवा प्रदाताओं, शिक्षकों और डॉक्टरों के लिए।
आर्थिक योगदानदेश की GDP में महत्वपूर्ण योगदान।औद्योगिक विकास और निर्यात में योगदान।सेवा क्षेत्र का विकास और रोजगार सृजन।

निष्कर्ष

प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्र एक अर्थव्यवस्था के तीन प्रमुख स्तंभ हैं, जो विभिन्न प्रकार की आर्थिक क्रियाओं को संचालित करते हैं। प्रत्येक क्षेत्र का अपना विशेष महत्व और योगदान होता है, जो समग्र आर्थिक विकास में सहायक होता है।

7. आर्थिक और गैर-आर्थिक क्रियाओं में क्या अंतर है?

उत्तर: आर्थिक और गैर-आर्थिक क्रियाओं में अंतर

आर्थिक और गैर-आर्थिक क्रियाएँ दो प्रमुख श्रेणियाँ हैं, जिनमें विभिन्न गतिविधियों को वर्गीकृत किया जा सकता है।

आर्थिक क्रियाएँ:

  1. परिभाषा: आर्थिक क्रियाएँ वे गतिविधियाँ हैं जो व्यक्तिगत आय को बढ़ाने के लिए की जाती हैं। ये गतिविधियाँ वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन करती हैं और अर्थव्यवस्था में योगदान देती हैं।
  2. उदाहरण:
    • कृषि, उद्योग, व्यापार, और सेवाएँ जैसे बैंकिंग और परिवहन।
    • यदि कोई व्यक्ति एक दुकान खोलता है और सामान बेचता है, तो यह आर्थिक क्रिया है क्योंकि इससे आय उत्पन्न होती है।

गैर-आर्थिक क्रियाएँ:

  1. परिभाषा: गैर-आर्थिक क्रियाएँ वे गतिविधियाँ हैं जो किसी आर्थिक लाभ के लिए नहीं की जाती हैं, बल्कि संतोष या सामाजिक दायित्व की पूर्ति के लिए की जाती हैं।
  2. उदाहरण:
    • सामाजिक कार्य, जैसे कि अनाथालय में सेवा करना या किसी धार्मिक स्थल पर जाना।
    • ये गतिविधियाँ आमतौर पर व्यक्तिगत संतोष या सामाजिक भलाई के लिए होती हैं और इनसे कोई वित्तीय लाभ नहीं होता।

मुख्य अंतर:

  • आर्थिक क्रियाएँ: ये व्यक्तिगत आय को बढ़ाती हैं और अर्थव्यवस्था में वस्तुओं और सेवाओं का प्रवाह करती हैं।
  • गैर-आर्थिक क्रियाएँ: ये व्यक्तिगत संतोष या सामाजिक दायित्व को पूरा करने के लिए होती हैं और इनका अर्थव्यवस्था पर कोई प्रत्यक्ष प्रभाव नहीं होता।

इस प्रकार, आर्थिक और गैर-आर्थिक क्रियाओं के बीच का मुख्य अंतर उनके उद्देश्य और परिणाम में निहित है। आर्थिक क्रियाएँ वित्तीय लाभ के लिए होती हैं, जबकि गैर-आर्थिक क्रियाएँ सामाजिक या व्यक्तिगत संतोष के लिए होती हैं।

8. महिलाएँ क्यों निम्न वेतन वाले कार्यों में नियोजित होती हैं?

उत्तर: महिलाएँ निम्न वेतन वाले कार्यों में कई कारणों से नियोजित होती हैं, जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:

  1. शिक्षा और कौशल की कमी: महिलाओं को अक्सर शिक्षा और कौशल विकास के अवसरों से वंचित रखा जाता है। इससे उनकी नौकरी पाने की क्षमता कम हो जाती है, और वे निम्न वेतन वाले कार्यों में ही सीमित रह जाती हैं।
  2. लैंगिक भेदभाव: समाज में व्याप्त लैंगिक भेदभाव के कारण महिलाओं को उच्च वेतन वाले कार्यों में समान अवसर नहीं मिलते। उन्हें अक्सर यह समझा जाता है कि वे पुरुषों की तुलना में कम सक्षम हैं।
  3. परिवारिक जिम्मेदारियाँ: कई महिलाएँ परिवार की देखभाल और घरेलू कार्यों के कारण पूर्णकालिक नौकरी नहीं कर पाती हैं। जब वे काम करती हैं, तो अक्सर उन्हें ऐसे कार्यों में रखा जाता है जो कम वेतन देते हैं।
  4. सुरक्षा और कार्यस्थल की स्थिति: कार्यस्थलों पर महिलाओं के लिए सुरक्षा की कमी भी एक महत्वपूर्ण कारण है। कई महिलाएँ ऐसे कार्यों को चुनती हैं जहाँ उन्हें सुरक्षा का आश्वासन होता है, भले ही वे निम्न वेतन वाले हों।
  5. अवसरों की कमी: कई क्षेत्रों में महिलाओं के लिए रोजगार के अवसर सीमित होते हैं, जिससे उन्हें निम्न वेतन वाले कार्यों को स्वीकार करने के लिए मजबूर होना पड़ता है।

इन कारणों के चलते, महिलाओं को अक्सर निम्न वेतन वाले कार्यों में नियोजित किया जाता है। इसके समाधान के लिए शिक्षा और कौशल विकास पर जोर देना आवश्यक है, साथ ही समाज में लैंगिक समानता को बढ़ावा देना भी महत्वपूर्ण है।

9. ‘बेरोज़गारी’ शब्द को आप कैसे व्याख्या करेंगे?

उत्तर: परिभाषा: बेरोज़गारी उस स्थिति को दर्शाती है जब व्यक्ति काम करने की इच्छा और क्षमता रखते हुए भी रोजगार प्राप्त नहीं कर पाता। यह एक सामाजिक और आर्थिक समस्या है, जो न केवल व्यक्ति के जीवन को प्रभावित करती है, बल्कि समाज और देश की आर्थिक प्रगति पर भी नकारात्मक प्रभाव डालती है।

कारण: बेरोज़गारी के कई कारण हो सकते हैं, जैसे:

  1. आर्थिक मंदी: जब अर्थव्यवस्था में गिरावट आती है, तो कंपनियाँ नए कर्मचारियों को नियुक्त करने में संकोच करती हैं।
  2. शिक्षा और कौशल का अभाव: कई बार लोग आवश्यक कौशल या शिक्षा की कमी के कारण नौकरी पाने में असमर्थ होते हैं।
  3. जनसंख्या वृद्धि: बढ़ती जनसंख्या के कारण रोजगार के अवसर सीमित हो जाते हैं।
  4. तकनीकी परिवर्तन: तकनीकी उन्नति के कारण कुछ पारंपरिक नौकरियाँ समाप्त हो जाती हैं, जिससे बेरोज़गारी बढ़ती है।

प्रभाव: बेरोज़गारी के कई नकारात्मक प्रभाव होते हैं, जैसे:

  • आर्थिक संकट: बेरोज़गारी से व्यक्ति की आय में कमी आती है, जिससे उपभोक्ता खर्च में गिरावट आती है।
  • सामाजिक अस्थिरता: बेरोज़गारी के कारण सामाजिक तनाव और अपराध की दर में वृद्धि हो सकती है।
  • मानसिक स्वास्थ्य: बेरोज़गारी से व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है, जिससे अवसाद और चिंता जैसी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।

निष्कर्ष: बेरोज़गारी एक गंभीर समस्या है, जिसका समाधान समाज और सरकार दोनों को मिलकर करना होगा। इसके लिए शिक्षा, कौशल विकास, और रोजगार सृजन की नीतियों को लागू करना आवश्यक है।

10. प्रच्छन्न और मौसमी बेरोज़गारी में क्या अंतर है?

उत्तर: प्रच्छन्न और मौसमी बेरोज़गारी में अंतर

प्रच्छन्न बेरोज़गारी (Disguised Unemployment):

  • प्रच्छन्न बेरोज़गारी तब होती है जब लोग काम कर रहे होते हैं लेकिन वास्तव में उनकी संख्या से उत्पादन में कोई वृद्धि नहीं होती। उदाहरण के लिए, एक कृषि परिवार में यदि आठ लोग काम कर रहे हैं जबकि केवल चार लोगों की आवश्यकता है, तो चार लोग प्रच्छन्न बेरोज़गार हैं। उनका काम से हट जाना उत्पादन को प्रभावित नहीं करेगा।

मौसमी बेरोज़गारी (Seasonal Unemployment):

  • मौसमी बेरोज़गारी तब होती है जब लोग वर्ष के कुछ खास महीनों में काम नहीं पा सकते। यह आमतौर पर कृषि क्षेत्र में होती है, जैसे कि फसल बोने और काटने के मौसम में काम होता है, लेकिन अन्य महीनों में काम की कमी होती है। उदाहरण के लिए, किसान केवल कटाई के समय काम कर सकते हैं, जबकि अन्य समय में वे बेरोजगार हो जाते हैं।

संक्षेप में:

  • प्रच्छन्न बेरोज़गारी में लोग काम करते हुए भी उत्पादन में योगदान नहीं देते, जबकि मौसमी बेरोज़गारी में लोग कुछ महीनों के लिए काम नहीं कर पाते हैं।

सुझाव:

प्रच्छन्न बेरोज़गारी को कम करने के लिए कौशल विकास और शिक्षा पर ध्यान देना आवश्यक है, ताकि लोग अधिक उत्पादक कार्यों में संलग्न हो सकें। मौसमी बेरोज़गारी के लिए, कृषि के अलावा अन्य क्षेत्रों में रोजगार के अवसरों का विकास करना महत्वपूर्ण है।

11. शिक्षित बेरोज़गारी भारत के लिए एक विशेष समस्या क्यों है?

उत्तर: शिक्षित बेरोज़गारी: एक विशेष समस्या

शिक्षित बेरोज़गारी का तात्पर्य उस स्थिति से है जब शिक्षित व्यक्ति, जैसे कि स्नातक या स्नातकोत्तर, उपयुक्त नौकरी पाने में असमर्थ होते हैं। यह भारत के लिए एक विशेष समस्या है, और इसके कई कारण हैं:

  1. अधिक जनसंख्या: भारत की जनसंख्या बहुत बड़ी है, और हर साल लाखों छात्र स्कूल और कॉलेज से स्नातक होते हैं। इस बड़ी संख्या के कारण नौकरी के अवसर सीमित होते हैं।
  2. कौशल की कमी: कई शिक्षित युवा केवल डिग्री प्राप्त करते हैं, लेकिन उनके पास आवश्यक कौशल की कमी होती है। उद्योगों की मांग के अनुसार कौशल विकास की कमी के कारण वे नौकरी पाने में असमर्थ रहते हैं।
  3. आर्थिक असमानता: कुछ क्षेत्रों में, जैसे कि तकनीकी या विज्ञान, अधिक योग्यताएं और कौशल की आवश्यकता होती है, जबकि अन्य क्षेत्रों में कम योग्यताएं आवश्यक होती हैं। इस असमानता के कारण कुछ क्षेत्रों में अधिक बेरोजगारी होती है।
  4. आवश्यकता और आपूर्ति का असंतुलन: कई बार, विशेष क्षेत्रों में नौकरी की आवश्यकता होती है, लेकिन योग्य उम्मीदवारों की संख्या अधिक होती है। उदाहरण के लिए, सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र में बहुत से स्नातक होते हैं, लेकिन सभी को नौकरी नहीं मिलती।
  5. शिक्षा प्रणाली की सीमाएं: भारत की शिक्षा प्रणाली में व्यावसायिक शिक्षा पर ध्यान नहीं दिया जाता है। यदि छात्रों को व्यावसायिक कौशल सिखाए जाएं, तो वे अधिक रोजगार के अवसर प्राप्त कर सकते हैं।

सुझाव:

  • व्यावसायिक शिक्षा को बढ़ावा: शिक्षा प्रणाली में व्यावसायिक शिक्षा को शामिल किया जाना चाहिए ताकि छात्र नौकरी के लिए बेहतर तैयार हो सकें।
  • कौशल विकास कार्यक्रम: सरकार और निजी संस्थानों को कौशल विकास कार्यक्रमों पर ध्यान देना चाहिए ताकि युवा आवश्यक कौशल प्राप्त कर सकें।
  • उद्यमिता को प्रोत्साहन: युवाओं को उद्यमिता की ओर प्रेरित करना चाहिए, जिससे वे अपने व्यवसाय शुरू कर सकें और रोजगार सृजन कर सकें।

निष्कर्ष: शिक्षित बेरोज़गारी एक गंभीर समस्या है, लेकिन इसे सही नीतियों और कार्यक्रमों के माध्यम से हल किया जा सकता है।

12. आप के विचार से भारत किस क्षेत्र में रोज़गार के सर्वाधिक अवसर सृजित कर सकता है?

उत्तर: भारत एक कृषि प्रधान देश है, और इसलिए कृषि क्षेत्र में रोजगार के सर्वाधिक अवसर सृजित किए जा सकते हैं। कृषि के अंतर्गत विभिन्न गतिविधियाँ आती हैं जैसे कि फसल उत्पादन, पशुपालन, मत्स्य पालन, और वानिकी। इसके अलावा, कृषि आधारित उद्योगों जैसे खाद्य प्रसंस्करण, डेयरी उत्पाद, और बागवानी में भी रोजगार के अवसर बढ़ सकते हैं।

इसके अलावा, भारत में विनिर्माण क्षेत्र भी रोजगार सृजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। ‘मेक इन इंडिया’ जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से, सरकार ने विनिर्माण को बढ़ावा देने का प्रयास किया है, जिससे युवाओं के लिए नए रोजगार के अवसर उत्पन्न हो सकते हैं।

तृतीयक क्षेत्र, जिसमें सेवाएँ जैसे कि बैंकिंग, स्वास्थ्य, शिक्षा, और पर्यटन शामिल हैं, भी रोजगार के अवसरों का एक बड़ा स्रोत है। इस क्षेत्र में वृद्धि के साथ, विशेष रूप से सूचना प्रौद्योगिकी और डिजिटल सेवाओं में, रोजगार के नए अवसर उत्पन्न हो रहे हैं।

इस प्रकार, भारत में कृषि, विनिर्माण, और तृतीयक क्षेत्र में रोजगार के अधिकतम अवसर सृजित किए जा सकते हैं।

13. क्या आप शिक्षा प्रणाली में शिक्षित बेरोज़गारों की समस्या दूर करने के लिए कुछ उपाय सुझा सकते हैं?

उत्तर: समस्या का परिचय: शिक्षा प्रणाली में शिक्षित बेरोज़गारों की समस्या एक गंभीर चुनौती है। यह समस्या तब उत्पन्न होती है जब युवा लोग उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी नौकरी पाने में असमर्थ होते हैं। इसके कई कारण हो सकते हैं, जैसे कि कौशल की कमी, उद्योग की आवश्यकताओं के साथ असंगति, और आर्थिक मंदी।

उपाय:

  1. कौशल विकास कार्यक्रम:
    • शिक्षा संस्थानों को कौशल विकास कार्यक्रमों को शामिल करना चाहिए, जो छात्रों को व्यावहारिक कौशल सिखाते हैं। इससे उन्हें नौकरी के लिए बेहतर तैयार किया जा सकेगा।
  2. इंटरशिप और प्रोजेक्ट कार्य:
    • छात्रों को उनके पाठ्यक्रम के दौरान इंटर्नशिप और प्रोजेक्ट कार्य का अनुभव प्रदान करना चाहिए। इससे वे वास्तविक कार्य वातावरण में अनुभव प्राप्त कर सकेंगे और अपने नेटवर्क का विस्तार कर सकेंगे।
  3. उद्योग के साथ सहयोग:
    • शिक्षा संस्थानों को उद्योगों के साथ सहयोग करना चाहिए ताकि पाठ्यक्रम को उद्योग की आवश्यकताओं के अनुसार अपडेट किया जा सके। इससे छात्रों को उन कौशलों का ज्ञान होगा जो उन्हें नौकरी पाने में मदद करेंगे।
  4. उद्यमिता को बढ़ावा:
    • छात्रों को उद्यमिता के लिए प्रेरित करना चाहिए। इसके लिए विशेष पाठ्यक्रम और कार्यशालाएँ आयोजित की जा सकती हैं, जिससे वे अपने व्यवसाय शुरू करने के लिए तैयार हो सकें।
  5. करियर काउंसलिंग:
    • छात्रों को करियर काउंसलिंग सेवाएँ प्रदान की जानी चाहिए, ताकि वे अपने करियर विकल्पों के बारे में सही जानकारी प्राप्त कर सकें और अपने लक्ष्यों को निर्धारित कर सकें।
  6. ऑनलाइन प्लेटफार्मों का उपयोग:
    • ऑनलाइन शिक्षा और कौशल विकास प्लेटफार्मों का उपयोग करके छात्रों को नए कौशल सीखने के अवसर प्रदान किए जा सकते हैं। यह उन्हें अपने समय के अनुसार सीखने की सुविधा देगा।

निष्कर्ष: शिक्षा प्रणाली में शिक्षित बेरोज़गारों की समस्या को दूर करने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है। विभिन्न उपायों को एक साथ लागू करके, हम इस समस्या का समाधान कर सकते हैं और युवाओं को रोजगार के बेहतर अवसर प्रदान कर सकते हैं।

14. क्या आप कुछ ऐसे गाँवों की कल्पना कर सकते हैं जहाँ पहले रोज़गार का कोई अवसर नहीं था, लेकिन बाद में बहुलावत में हो गया?

उत्तर: भारत में कई ऐसे गाँव हैं जहाँ पहले रोज़गार का कोई अवसर नहीं था, लेकिन बाद में बहुलावत में हो गया। यहाँ कुछ उदाहरण दिए गए हैं:

  1. गाँव: बड़ौदा, गुजरात
    • पहले की स्थिति: बड़ौदा गाँव में पहले कृषि ही मुख्य व्यवसाय था और यहाँ के लोग केवल अपने खेतों पर निर्भर थे।
    • बदलाव: जब बड़ौदा में औद्योगिक विकास हुआ, तो यहाँ कई फैक्ट्रियाँ खुल गईं। इससे गाँव के लोगों को रोजगार के नए अवसर मिले, जैसे कि निर्माण, परिवहन, और सेवाएँ।
  2. गाँव: कुमाऊँ, उत्तराखंड
    • पहले की स्थिति: कुमाऊँ क्षेत्र में पहले केवल कृषि और पशुपालन ही मुख्य व्यवसाय थे।
    • बदलाव: पर्यटन उद्योग के विकास के साथ, यहाँ होटलों, रिसॉर्ट्स और पर्यटन सेवाओं में रोजगार के अवसर बढ़ गए। इससे गाँव के लोग अब पर्यटन से भी आय अर्जित कर रहे हैं।
  3. गाँव: सलेम, तमिलनाडु
    • पहले की स्थिति: सलेम गाँव में पहले केवल कुटीर उद्योग और कृषि ही प्रमुख थे।
    • बदलाव: जब यहाँ टेक्सटाइल उद्योग का विकास हुआ, तो गाँव के लोगों को कपड़ा उद्योग में काम करने के लिए कई अवसर मिले। इससे गाँव की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ।

निष्कर्ष

इस प्रकार, कई गाँवों में पहले रोजगार के अवसर सीमित थे, लेकिन औद्योगिकीकरण, पर्यटन, और अन्य क्षेत्रों के विकास के कारण अब वहाँ रोज़गार के नए अवसर उत्पन्न हुए हैं। यह बदलाव न केवल गाँव की अर्थव्यवस्था को मजबूत करता है, बल्कि लोगों के जीवन स्तर में भी सुधार लाता है।

15. किस पूँजी को आप सबसे अच्छा मानते हैं—भूमि, श्रम, भौतिक पूँजी और मानव पूँजी? क्यों?

उत्तर: भूमि (Land):

भूमि प्राकृतिक संसाधनों का स्रोत है। यह कृषि, खनन, और निर्माण के लिए आवश्यक है। भूमि की उपलब्धता और गुणवत्ता किसी भी अर्थव्यवस्था की उत्पादन क्षमता को प्रभावित करती है।

श्रम (Labor):

श्रम मानव संसाधनों का प्रतिनिधित्व करता है। यह कार्यबल की क्षमता, कौशल और अनुभव पर निर्भर करता है। श्रम की गुणवत्ता और मात्रा किसी भी उद्योग की उत्पादकता को निर्धारित करती है।

भौतिक पूँजी (Physical Capital):

भौतिक पूँजी में मशीनें, उपकरण, और अन्य भौतिक संसाधन शामिल होते हैं जो उत्पादन प्रक्रिया में सहायता करते हैं। यह उत्पादन की गति और गुणवत्ता को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

मानव पूँजी (Human Capital):

मानव पूँजी में शिक्षा, कौशल, और अनुभव शामिल होते हैं जो व्यक्तियों को कार्य करने की क्षमता प्रदान करते हैं। यह पूँजी किसी भी अर्थव्यवस्था के विकास में सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है, क्योंकि यह श्रम की उत्पादकता को सीधे प्रभावित करती है।

किस पूँजी को सबसे अच्छा मानना चाहिए?

  • मानव पूँजी को सबसे अच्छा माना जा सकता है क्योंकि यह श्रम की गुणवत्ता को बढ़ाती है। एक शिक्षित और कुशल कार्यबल अधिक उत्पादक होता है और नवाचार को बढ़ावा देता है। उदाहरण के लिए, तकनीकी क्षेत्र में कुशल पेशेवरों की मांग अधिक होती है, जो अर्थव्यवस्था के विकास में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।

निष्कर्ष:

सभी प्रकार की पूंजी का अपना महत्व है, लेकिन मानव पूँजी को प्राथमिकता देना चाहिए क्योंकि यह अन्य पूंजी के प्रभाव को अधिकतम करने में मदद करती है। शिक्षा और कौशल विकास पर ध्यान केंद्रित करने से एक मजबूत और प्रतिस्पर्धी कार्यबल तैयार होता है।

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